2122 - 2122 - 212
करते हो इतनी जो ये तकरार तुम
कैसे दिलबर के बनोगे यार तुम
तौलते हो प्यार भी मीज़ान में
प्यार को समझे हो क्या व्यापार तुम
इश्क़ में जब तक न होगी हाँ में हाँ
हो नहीं सकते कभी दिलदार तुम
हम-ज़बाँ हों इश्क़ में - पहला सबक़
सीख कर करना वफ़ा इज़हार तुम
जानेमन जज़्बात को समझे बिना
पा नहीं सकते किसी का प्यार तुम
दिल के बदले दिल की चाहत ख़ूब है
दर्द सहने को रहो तैयार तुम
अब सुकूँ और नींद भी उड़ जाएगी
प्यार का कर लो ज़रा इक़रार तुम
इश्क़ में लुटने का है ऐसा मज़ा
कर नहीं पाओगे बस इन्कार तुम
जान भी देनी पड़े गर प्यार में
सर झुकाकर रहना बस तैयार तुम
चाहतों में देर करना है बुरा
कर दो फ़ौरन प्यार का इज़हार तुम
इश्क़ में गर जीतना हो दिल 'अमीर'
जीतना मत ख़ुद ही जाना हार तुम
"मौलिक व अप्रकाशित"
मीज़ान - तराज़ू, तुला, योगफल, पैमाईश, total, scale.
हम-ज़बाँ - सहमत, एकमत, दोस्त, same opinion, agreed.
Comment
मुहतरम चेतन प्रकाश जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का बहुत शुक्रिया। आप गुणीजनों की इस्लाह और आशीर्वाद के संबल से सृजनात्मक प्रयास कर रहा हूँ, कृपया स्नेह बनाए रखें। सादर।
आदाब, 'अमीर साहब, खूबसूरत ग़ज़ल के हवाले से अच्छा और सच्चा प्यार का फलसफा दिया है, आपने ! मँजे हुए खिलाड़ी जान पड़ते हैं, जनाब आप ! मुबारकबाद कबूल कीजिए !
//वैसे, इस मक्ते पर तनिक और भी समय दिया जा सकता है//
जी, ख़ुश-आमदीद और बहुत शुक्रिया।
मुहतरम नया मक़्ता लिख दिया है, उम्मीद है कि आपके पैमाने के अनुसार हुआ हो।
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी इस पर भी इस पर भी आपकी राय जानना चाहूँगा :
'इश्क़ में जब भी ज़रूरी हो 'अमीर'
अपने अरमानों पे करना वार तुम' सादर।
आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी.
आपने मक्ते पर मेरे इशारे को न केवल समझा, माकूल परिवर्तन भी कर लिया, यह पारस्परिक समझ की सुंदर मिसाल है, जो ओबीओ के पटल पर प्रश्रय पाता है.
वैसे, इस मक्ते पर तनिक और भी समय दिया जा सकता है.
शुभ-शुभ
मुहतरम सौरभ पाण्डेय जी आदाब, ऐसे ही ओ बी ओ हमें अज़ीज़ नहीं है, मुझे बेहद ख़ुशी है कि इस ज्ञान की पाठशाला का अब मैं भी संस्थागत छात्र हूँ और आप सब गुणीजन मेरे रहबर। ख़ाकसार की ग़ज़ल पर आप और समर कबीर साहिब जैसी हस्तियों का संज्ञान लेना और दाद देना मेरे लिए बड़ी बात है जिसके लिए मैं (जनाब मनोज कुमार 'अहसास' जी समेत) आप सभी गुणीजनों का बहुत शुक्रगुज़ार हूँ।
मक़्ते पर आपकी राय से मुत्तफ़िक़ हूँ, ऊला मिसरे मेंं बदलाव कर दिया है एक नज़र देख लें ः
'प्यार है जज़्बात का झुरमुट 'अमीर'
याद रखना करना जब भी प्यार तुम' सादर।
आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब, ग़ज़ल अच्छी कही. दाद कबूल करें.
व्यापार या ब्यौपार के संदर्भ में आदरणीय समर साहब के सौजन्य से दोपहर में ही फोन पर सुन लिया था. आपने व्यापार शब्द को स्वीकार कर लिया, इस हेतु धन्यवाद.
वस्तुत: कई ऐसे शब्द प्रचलित हो जाते हैं जो भाषा के कोश या लुगत में नहीं होते. परंतु उनका प्रचलन हो जाता है. जब कि वे अशुद्ध होते हैं. जैसे, श्रृंगार, ब्यौपार, दवाईयाँ, जुरूर, जुरूरत इत्यादिक. ये सभी शब्द प्रचलन में हैं, किंतु मानक शब्दकोशों में या लुगत में आप इन्हें नहीं पाएँगे.
बाकी, ग़ज़ल बेहतर बन पड़ी है. सभी शेर पठनीय और सार्थक हैं, सिवा मक्ते के.
शुभातिशुभ
मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, जनाब आपकी बात सर आँखों पर, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। सादर।
//ब्योपार' शब्द हिन्दी भाषा के शब्द व्यापार के रूप में बहुत सारे उर्दू दाँ और शाइर अपने कलामों में इस्तेमाल कर चुके हैं, हालांकि कई शाइर 'व्यापार' भी लिखते हैं, चन्द मिसालें 'ब्योपार' शब्द पर पेश करता हूँ//
जनाब अमीरुद्दीन साहिब, सवाल ये है कि "ब्योपार" तो कोई शब्द ही नहीं है, और 'व्यापार' और 'ब्योपार' दोनों का वज़्न एक ही है, तो उचित यही होगा कि "व्यापार" शब्द का ही इस्तेमाल किया जाए ।
वैसे 'ब्योपार' शब्द पर आपने जिन शाइरों की मिसालें पेश की हैं, वो मुस्तनद शाइर तो नहीं हैं न ।
ग़ौर कीजियेगा ।
ग़ज़ल आपने अच्छी कही, उसके लिए बधाई ।
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया जनाब। सादर।
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