For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (ख़ून की जब तक ज़रूरत थी मेरे चाहा मुझे)

2122 - 2122 - 2122 - 212

ख़ून  की  जब  तक  ज़रूरत  थी  मेरे  चाहा  मुझे 

बा'द अज़ाँ  बस दूध  की मक्खी समझ फेंका मुझे 

उसने जब मंज़िल  की जानिब गामज़न पाया मुझे 

तंज़   से  मा'मूर  नफ़रत   की   नज़र   देखा  मुझे 

हक़-ब-जानिब  बढ़ गए  जब ये  क़दम रुकते नहीं 

मुश्किलों  ने  बढ़के  यूँ  तो  लाख  रोका  था  मुझे 

अपने अहसाँ के 'इवज़ वो कर गया ख़ूँ का हिसाब 

यारो  उसने  तो  कहीं   का  भी   नहीं  छोड़ा  मुझे 

हाल-ए-ग़म कहने गया था  मानकर जिसको ख़ुदा

ख़ुद  परेशाँ  था  वो  मुडकर  भी  नहीं  देखा  मुझे 

दोस्त   जितने   थे   मेरे   सब  दूर  जा  बैठे  हैं वो 

दुश्मनों   का   शुक्रिया   तन्हा   नहीं   छोड़ा   मुझे 

हाल  मेरी  बेबसी   का  सुनके   सबसे  कह  दिया 

क्या  किया  तूने  ओ यारा  कर  दिया  रुसवा मुझे 

मर  मिटा  था उस अदाकारा  की इक मुस्कान पर

मुस्करा  कर  उसने  जब  शोख़ी  से देखा था मुझे 

मेरे   बाज़ू   और   निगाहें   दोस्त   निकले  बेवफ़ा 

ख़ुद  की  नज़रों  ने  ही  देखो  दे दिया धोका  मुझे 

फिर  रहा हूँ आज दर-दर  सब करम अपनों का है 

घर  मेरा  नीलाम  कर  ठोकर  पे  रख  छोड़ा मुझे 

छीन  मुझसे  ले  गया  वो  हाफ़िज़ा  मेरा  'अमीर' 

ख़ुद  भी तन्हा  रह गया और  कर  गया तन्हा मुझे 

"मौलिक व अप्रकाशित"

बा'द अज़ाँ - इसके बा'द, तदुपरांत, after that. गामज़न - अग्रसर, (तेज़ी से) बढ़ते हुए, stepping out.

तंज़ से मा'मूर - कटाक्ष भरी, कपटपूर्ण, Leery, Lascivious look, हक़-ब-जानिब- सच्चाई के पक्ष में,

सहीह रास्ते पर, stand with justice and truth. 'इवज़ - बदले में, प्रतिफल, मुआवज़ा, recompense. 

शोख़ी - चंचलता, चुलबुलाहट, शरारत, playfulness, pertness. हाफ़िज़ा - याददाश्त, memories. 

Views: 373

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 5, 2021 at 1:29pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया।  सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 5, 2021 at 1:26pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
17 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service