For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (काश होता न जो तक़दीर का मारा मैं भी )

2122 - 1122 - 1122 - 22/112

काश होता न जो तक़दीर का मारा मैं भी

देता  इफ़लास-ज़दाओं  को सहारा मैं भी

रौशनी मेरे सियह-ख़ाने  में रहती हर शब 

टिमटिमाता जो कोई होता सितारा मैं भी

वो  निगाहों  में  मिरी  जैसे  बसे रहते  हैं 

काश नज़रों  में  रहूँ  बनके नज़ारा मैं भी 

वो भी  मेरी  ही  तरह  दर्द  सहे आहें भरे  

यूँ  ही तन्हा  न रहूँ  इश्क़  का मारा मैं भी

जिस तरह क़ैस ने सहरा में गुज़ारे थे दिन 

कर  ही लूँगा तेरे  वादों पे  गुज़ारा  मैं भी 

राज़दारी  से  चली आना  मेरी जान इधर

मुस्कुराकर जो करूँ छत से इशारा मैं भी 

होती मुझ में भी तेरे जैसी बसीरत जो 'अमीर' 

कर गया होता ग़लीज़ों से किनारा मैं भी 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

इफ़लास-ज़दा - दरिद्रता से पीड़ित, मुफ़लिस, निर्धनता से दुखी, poor.

सियह-ख़ाना -  मुसीबतों का घर, क़ैद ख़ाना, वीरान घर, dark-room. 

क़ैस - लैला के आशिक़ का नाम, मजनूँ  सहरा - रेगिस्तान, उजाड़, वीराना, desert. 

राज़दारी-से - गुप्त रूप से, छुपते-छुपाते, रहस्यमयी ढंग से, secretly. 

बसीरत - ज्योति, चातुर्य, बुद्धिमत्ता, अन्तर्दृष्टि, दूरदर्शिता, दिल की नज़र, vision. 

ग़लीज़ों - नजिस, नापक, गंदे, अपवित्र, मलिन, भृष्ट (प्रकृति के) लोग 

Views: 508

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 26, 2021 at 4:44pm

मुहतरम रवि शुक्ला  जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।  सादर।

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2021 at 12:30pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी, अच्छी  गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें तीसरा शेर खास पसंद आया मुझे।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 25, 2021 at 10:24pm

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और ज़र्रा नवाज़ी का शुक्रिया।  सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 25, 2021 at 9:05pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 22, 2021 at 10:52pm

जनाब चेतन प्रकाश चेतन जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्धन हेतु आभार।

//दूसरे शे'र के सानी मिसरे में 'जो' के बजाय 'तो' होने पर कहन सार्थक होता//

मुहतरम दूसरे शे'र के सानी मिसरे में 'जो' को 'यदि' के अर्थ में लिया गया है जिसके लिए 'तो' को नहीं लिया जा सकता है।

//एक शंका और है, क्या, मोहतरम, मक़ते का ' जो' व्यर्थ नहीं है, सादर...! //

जनाब यहाँ भी 'जो' को 'यदि' के अर्थ में लिया गया है जो कि व्यधिकरण समुच्चयबोधक अव्यय है जिसके बिना बात पूरी और सार्थक नहीं हो सकती है।  सादर। 

Comment by Chetan Prakash on August 22, 2021 at 9:21pm

आदाब, अमीर' साहब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने! जनाब, दूसरे शे'र के सानी मिसरे में 'जो' के बजाय 'तो' होने पर कहन सार्थक होता! और एक शंका और है, क्या, मोहतरम, मक़ते का ' जो' व्यर्थ नहीं है, सादर...! 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service