(1)
ताला बंदी बाद अब, देखो थोड़ी छूट।
भीड़ दिखे अब शहर में, नियम रहे हैं टूट॥
(2)
घटा घिरी घनघोर अब, मन घट धरे न धीर।
आओ प्रियतम जल्द तुम, तभी मिटे मम पीर॥
( 3)
अन्य चुनावों से अधिक, रखना पड़े बचाव।
पंचायत के जब निकट, आने लगें चुनाव॥
(4)
अंकुश वाणी कलम पर, करें न अनुचित बात ।
इसमें ही जग का भला , यह ही जग विख्यात ॥
(5)
अंतर में पीड़ा धरे , ओंठन से मुस्काय ।
ऐसे नारी हृदय की, थाह कौन ले पाय॥
मौलिक ,अप्रकाशित
Comment
जनाब ओमप्रकाश शर्मा जी आदाब, दोहों का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों की बातों पर ध्यान दें ।
आदरणीय Chetan Prakash जी नमन क्या शीघ्र के स्थान पर जल्द कर देने से दोष निवारण हो जाएगा। मार्गदर्शन करने की कृपा करें।
नमन, आदरणीय, दोहा छंद पर आपका अपेक्षाकृत बेहतर प्रयास है ! किन्तु बंधु, दूसरे दोहे का तीसरा चरण, आओ प्रियतम शीघ्र तुम" पुन: देखें ! चौदह मात्राए हैं ! सादर
उत्तम दोहे छंद ये, इनके फलक अनंत !
विषम चरण हित जानिए, वाचिक यगण न अंत
आदरणीय ओमप्रकाश शर्मा जी, आपने दोहों पर बढ़िया प्रयास किया है. हार्दिक शुभकामनाएँ ..
उपर्युक्त सुझाव पर अवश्य ध्यान दीजिएगा.
शुभ-शुभ
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