1
सांसारिक कर्मों संग, याद रहे प्रभु नाम।
ईश कृपा बनी रहे, बन जाएँ सब काम॥
2.
जैसा जैसा समय हो, वैसे होते काम।
चिंता काहे हम करें, मदद करें श्री राम॥
3.
कोमल तन कटि क्षीण सी, सुंदर मोहक रूप।
वेणी नागिन सी बनी, चंचल नयन अनूप ॥
4.
कर्म कमाई आपकी, बदले सब संस्कार।
अनुचित अर्जित संपदा, हो दुख का आधार॥
5.
दुर्योधन ने कब किया,…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on September 2, 2021 at 2:30pm — 3 Comments
चुनकर संसद भेजते, उठें उचित सवाल।
साँसद संसद रोक के, करते वहाँ धमाल॥
निज कर्मों के साथ ही, याद रहे प्रभु नाम।
ईश कृपा जब तो मिले, बनते सारे काम॥
करे कमाई जिस तरह, वैसा रहे प्रभाव ।
अर्जित धन अनुचित सदा, देता रहता घाव॥
न व्यक्तित्व हो एक सा, अंतर होता मीत।
विचार जिससे जब मिले, जग जाती तब प्रीत॥
दो छोटों की बात पर, आप हमेशा…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on August 13, 2021 at 8:30pm — 5 Comments
कलयुग में ऋण के बिना, सरे न कोई काम।
बड़ी बड़ी जो हस्तियाँ , ऋण ले बनी तमाम ॥
टाँक पैबंद वस्त्र में, तब ढकते थे लाज।
लोग प्रदर्शन कर रहे, उन्हें फाड़कर आज॥
मूर्ति मात्र साधन सदा, ध्यान लगाएँ नित्य।
निराकार ईश्वर सदा, देखता सबके कृत्य॥
मान पुरुष को दे भले, सामाजिक परिवेश।
घर पर तो चलता सदा, पत्नी का आदेश॥
कर…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on July 21, 2021 at 12:00am — 5 Comments
सासु यहाँ घर पर करे, अब बाई का काम।
बहू सुबह है निकलती, आती है फिर शाम॥
.
शिक्षा सारी व्यर्थ है, व्यर्थ समझ सब ज्ञान।
पदवी पा करता नही, मात पिता सम्मान।।
.
शिक्षा जिसमें सीख हो, और श्रेष्ठ संस्कार।
जीवन को उज्ज्वल करे, सिखलाए व्यवहार॥
.
मेघ छटे अब खिल गई, यहाँ सुनहली धूप।
धुली धुली सी लग रही। मोहक प्रकृति अनूप॥
.
हम चिंता निज की…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on July 14, 2021 at 11:00pm — No Comments
(1)
ताला बंदी बाद अब, देखो थोड़ी छूट।
भीड़ दिखे अब शहर में, नियम रहे हैं टूट॥
(2)
घटा घिरी घनघोर अब, मन घट धरे न धीर।
आओ प्रियतम जल्द तुम, तभी मिटे मम पीर॥
( 3)
अन्य चुनावों से अधिक, रखना पड़े बचाव।
पंचायत के जब निकट, आने लगें चुनाव॥
(4)
अंकुश वाणी कलम पर, करें न अनुचित बात ।
इसमें ही जग का भला , यह ही जग विख्यात…
ContinueAdded by Om Parkash Sharma on July 12, 2021 at 9:30pm — 5 Comments
अपर्याप्त तो सोचना, किए बिना प्रयास। हो प्रयास उसके लिए, पूरी तब हो आस॥ |
इच्छाएँ सीमित रहें, दें प्रकृति को मान। |
तन को ढकने के… |
Added by Om Parkash Sharma on July 4, 2021 at 11:30pm — 8 Comments
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