अपर्याप्त तो सोचना, किए बिना प्रयास। हो प्रयास उसके लिए, पूरी तब हो आस॥ |
इच्छाएँ सीमित रहें, दें प्रकृति को मान। |
तन को ढकने के लिए, सिलते थे परिधान। अब उघाड़ कर अंग को, बनते लोग महान॥ |
नहीं क्षेत्र निर्जन रहे, सारे है जन मार। चंद्रलोक में चाहते, बसता नव संसार॥ |
नहीं रहे सम्बन्ध वो, नहीं पुरानी बात। |
पंसारी सारे बने, हल्दी गठ पा आज। संस्कारी मिलते नही, सुने कौन आवाज॥ |
पड़े मुसीबत जब कभी, बापू आते याद। |
बेटा सिर पर बाप के, पढ़ बैठा विज्ञान। अब कहता है बाप से, चुप रह तू अनजान॥ |
योग करें इस देह में, दुर्लभ मिला सुयोग। वृद्धि श्वास में होय जब, तन मन बुद्धि निरोग॥ स्वरचित , मौलिक ,अप्रकाशित |
Comment
Samar kabeer नमस्कार सटीक टिप्पणी के लिए आपका सादर आभार । सुधार कर पुन: प्रेषित करने का प्रयास रहेगा ।
Samar kabeer जी नमन , आप सभी गुनीजनों की प्रेरणा से सुधार करने का पूरा प्रयास करूंगा। सादर धन्यवाद ।
Chetan Prakash जी नमस्कार , आपका सटीक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार। आपके निर्देशानुसार सुधार का प्रयास रहेगा । कृपया इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहें।
अमीरुद्दीन 'अमीर'जी आदरणीय उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार।
जनाब ओमप्रकाश शर्मा जी आदाब, दोहों का अच्छा प्रयास है,लेकिन दोहे अभी समय चाहते हैं,गुणीजनों की बातों पर ध्यान दें, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय ओमप्रकाश जी सादर, दोहों पर अच्छा प्रयास हुआ है आपका । कुछ दोहे अच्छे रचे भी गए हैं, किन्तु अधिक में कार्य किये जाने की आवश्यकता महसूस हो रही है । जैसे प्रथम दोहे का आशय स्पष्ट नहीं हो रहा है । इसी दोहे के तृतीय चरण की गेयता भी बाधित हो रही है । द्वितीय में/किये बिना प्रयास/ इस चरण में दस मात्राएँ रह गयी हैं । /दें प्रकृति को मान/ यहाँ भ एक मात्रा कम है । अन्य दोहों पर भी कुछ कार्य किये जाने की आवश्यकता है ।सादर
आपका पहला दोहा सच को अभिव्यक्त कर रहा है, अशुद्ध रचना, अनावश्यक संख्या विस्तार उक्त श्रेणी में ही आता है ! जब कि ओ बी ओ का नीति -निर्देशक सिद्धांत है, कम लिखें , शास्त्रीय- उच्च स्तरीय लिखे! " दें प्रकृति को मान, दोहे का द्वितीय चरण है ! कृपया, मात्राएं देखें !" नहीं क्षेत्र निर्जन रहे ( दोहे का प्रथम चरण ) फिर मात्रा- गणना करें, महोदय ! " पढ़ बैठा विज्ञान " नवें दोहे का दूसरा चरण, एक बार पुन: मात्राएं गिनें ! सातवें दोहे का वाक्य-विन्यास संशोधन की अपेक्षा रखता है !
जनाब ओमप्रकाश शर्मा जी आदाब, यथार्थता पर आधारित अच्छे दोहे हुए हैं बधाई स्वीकार करें। सादर।
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