चुनकर संसद भेजते, उठें उचित सवाल।
साँसद संसद रोक के, करते वहाँ धमाल॥
निज कर्मों के साथ ही, याद रहे प्रभु नाम।
ईश कृपा जब तो मिले, बनते सारे काम॥
करे कमाई जिस तरह, वैसा रहे प्रभाव ।
अर्जित धन अनुचित सदा, देता रहता घाव॥
न व्यक्तित्व हो एक सा, अंतर होता मीत।
विचार जिससे जब मिले, जग जाती तब प्रीत॥
दो छोटों की बात पर, आप हमेशा ध्यान।
उनके कथनो में मिले, कभी अनूठा ज्ञान॥
छूट लूट का लाभ तो, सभी उठाते लोग।
ऐसी ही हालत रही, बढ़ सकता है रोग॥
मुस्काई जाकर निकट, मटका दोनों नैन।
समझा प्रियतम को गई, बिन बोले दे सैन॥
मिले सफलता एक दिन, रोज करें अभ्यास।
उसके बिन होता कठिन, भले ज्ञान है पास॥
य व का तो करना नहीं, कभी विकल्प प्रयोग।
स्वर होता उच्चरित यदि, हो स्वर का संयोग॥
बेटों की मजबूरियाँ, भी समझें माँ बाप।
करे मेहनत वे बहुत, झेले कितने ताप॥
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Saurabh Pandey जी नमस्कार व उत्साहवर्धन तथा मार्गदर्शन के लिए आभार ।
बृजेश कुमार 'ब्रज' जी दोहे पढ़ने और उस पर प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद। 'बिन बोले दे सैन' से अभिप्राय कुछ भी कहे बिना इशारे से समझाना। नायिका नाक के निकट आ मुस्कुराई, नेत्र मटका कर इशारा किया, मुँह से एक श्बद भी बोले बिना जो उसे कहना था इशारों ही ही इशारों बता कर चली गई। शेष दोहे के बारे मेन भी भी आप पूछ सकते हैं।
बढ़िया दोहे लगे आदरणीय शर्मा जी...कुछ दोहे समझ नहीं आये जैसे "बिन बोले दो सैन" का क्या अर्थ हुआ?
आपके प्रयास हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीय.
दोहा छंद पर आप सार्थक प्रयास करें, आपके दोहे विधानसम्मत हो जाएँगे.
शुभातिशुभ
जनाब ओमप्रकाश जी आदाब, दोहों पर आपका प्रयास अच्छा है,लेकिन अभी आपको इसके विधान का अध्यन करने की ज़रूरत है, ओबीओ पर इस पर आलेख मौजूद हैं,उनका लाभ लें, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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