For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : कामकाजी बेटियों का खिलखिलाना भा गया // -- सौरभ

2122 2122 2122 212

 

ये हुनर है, या लियाकत, दर्द पीना आ गया 
कामकाजी बेटियों का खिलखिलाना भा गया 
 
हम उन्हें क्या कुछ समझते थे बता पाये नहीं
पर उन्हें क्या-क्या बताते, खैर जो बीता, गया 
 
हम न थे काबिल कभी, हमने कभी कोशिश न की 
आपको पर क्या हुआ.. जो आपका दावा गया ?             [संशोधित, सौजन्य आ० समर साहब]
  
मैं निवेदन क्या करूँ संवेदना के मौन से
प्रेम के संधान में जो कुछ गया मेरा गया।
 
जब उनींदी आँखों में बीनाइयाँ घुलने लगीं 
पश्चिमी आकाश में सूरज इशारे पा गया 
 
पुस्तकों के शब्द के विन्यास औ' व्यवहार से 
वस्तुत: वे छल रहे थे, जानना दहला गया ।
  
रात्रि है, बारिश गहन, तिस पर अँधेरे की धमक
सूर्य के आह्वान पर मौसम भला क्या आ गया ? 
 
जो दमकते, कौंधते थे आज सब निस्तेज हैं
एक 'सौरभ' देखिए कुछ इस तरीके छा गया
***
सौरभ 
 
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1357

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2021 at 12:25pm

आपकी उपस्थिति का हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय नीलेश भाई. 

 

आपके सवालों का मैं उत्तर क्या दूँ ? .. आप स्वयं समाधान ढ़ूँढ़ें और पटल को उपकृत करें. 

शुभातिशुभ

Comment by Nilesh Shevgaonkar on August 18, 2021 at 12:10pm

आ. सौरभ सर,
लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिली. आनंद हुआ.
ग़ज़ल के कुछ शेर अच्छे हुए हैं.
मतले पर अमीरुद्दीन साहब से सहमत हूँ कि दोनों मिसरों में रब्त का आभाव है.  बेटियों की खिलखिलाहट का दर्द पीने से मैं कोई सम्बन्ध नहीं जोड़ सका. आप एक्सप्लेन कर देंगे तो शायद क्लियर हो जाए.
.

 
जब उनींदी आँखों में बीनाइयाँ घुलने लगीं 
पश्चिमी आकाश में सूरज इशारे पा गया .... इस शेर में एक बारीक सा पेंच है.. पश्चिम में सूर्य अस्त होता है..
उनींदी आँखों में बीनाई (रौशनी) घुलेगी तो सूर्य अस्त होने का इशारा कैसे पाएगा?
इन  उनींदी आँखों में जब कालिमा  घुलने लगीं ..शायद ऐसा कुछ हो...
ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 31, 2021 at 11:18pm

आदरणीय चेतन सर.. प्रणाम !

आप जो कुुछ कह रहे हैं, उस पर भी मनन करूँगा. 

ठीक न ?

जय-जय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 31, 2021 at 11:15pm

आदरणीय समर साहब, बातें वही जो हम-आप बतिया चुके हैं.

तिस पर भी जो कुछ घुमड़ती रह गयी, आपने उन्हें नरम-गरम कर साझा कर लिया.  आभारी हूँ. 

 

क्या कहूँ कैसे कहूँ ये वक्त भी क्या आ गया .. 

चाँद है तारे भी हैं कुछ पर अमा का भान है !

 

 

'न' को अदलना-बदलना यहाँ संभव है. कर देता हूँ, साहब.

एक बार और इस बिन्दु पर कभी चर्चा हो चुकी है क्या ? संभवत:.

वैसे आश्वस्त नहीं हूँ. अभी सुधार कर लेता हूँ. 

मैं अब अपनी उपस्थिति की बारम्बारता को निरंतर करने का प्रयास कर रहा हूँ. गनेस भाई से इसे ले कर मेरी आश्वस्तिकारी चर्चा हुई थी. 

शुभ-शुभ 

Comment by Chetan Prakash on July 30, 2021 at 7:05pm

नमन,  आदरणीय  सौरभ  साहब , "पश्चिमी आकाश  मे  

सूरज  इशारे पा गया" आप स्वयं  सूर्य को एक वचन, संज्ञा मान रहे  हैं, और  हमारे ब्रह्मांड का सत्य

सत्य भी यही है ! फिर, आदरणीय,  " नहीं,जी . सूर्य से कोई प्रश्न नहीं है क्योकि सूर्य एकवचन  कर्ता नहीं है" से ध्यानस्थ होकर  भी क्या प्राप्त  होगा, श्री जी  ? सादर  

Comment by Samar kabeer on July 30, 2021 at 6:32pm

//पता नहीं अभी तक की प्रतिक्रियाओं के सापेक्ष क्या कहा जाना उचित होगा.//

 

भाई, आप जानते हैं कि मैं दूसरों की टिप्पणी देख कर टिप्पणी देने वाला पाठक नहीं हूँ, और न ही दूसरे सदस्यों की टिप्पणी को काटना मेरा मक़सद होता है, मुझे मतला जैसा लगा मैंने इज़हार कर दिया ।

//हम ओबीओ पर यह नई प्रवृति देख रहे हैं कि पाठकीयता की आड़ में विद्वद्जन कुछ भी समझ-कह जा रहे हैं. हो सकता है एक विशिष्ट आयोजन के अलावा मेरा ही संपर्क इस पटल से एक अरसे से टूटा हुआ है. अन्यथा, ऐसी टिप्पणियों की हम तो सोच भी नहीं सकते थे.// 

 

ओबीओ पर तो आजकल वो कुछ हो रहा है जिसकी कल्पना भी हमने नहीं की थी, और ये सब प्रबंधन समिति के सदस्यों की ग़ैर हाज़िर होने के कारण हो रहा है, आजकल टिप्पणियाँ ज़ियादा तर बहुत कम शब्दों में की जाती हैं, मसलन 'अच्छी रचना हुई बधाई', आयोजनों का स्तर ये है कि 'तरही मुशाइर:' को छोड़कर बाक़ी के तीन आयोजन असफल कहे जा सकते हैं,इसका कारण ये कि आयोजन संचालक ही आयोजन से ग़ाइब होते हैं,कभी कभी तो आयोजन का बॉक्स खुलवाने और बंद करने के लिये मुझे रात 12 बजे आपको या जनाब बाग़ी जी को फ़ोन करना पड़ता है,जिसके आप गवाह हैं,चंद सदस्य ऐसे हैं जो अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रहे हैं,कुछ सदस्य तो ऐसे हैं जो सिर्फ़ अपनी रचना पोस्ट कर देते हैं और उस पर आई टिप्पणियों के जवाब दे देते हैं,दूसरों की रचनाओं से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता, कार्यकारिणी सदस्य भी लापता रहते है, ऐसे हालात में जो हो रहा है उसे ग़नीमत जानें कि ओबीओ की साख अल्लाह के फ़ज़्ल से अब भी क़ाइम है और इसके लिये चंद सक्रिय सदस्यों का ही योगदान है ।

//सुझाव उचित है. किंतु ऐसी कोई बाध्यता भी है क्या ? मुझे तो प्रतीत नहीं होता.// 

बिल्कुल बाध्यता है, 'क़ाबिल' शब्द की ज़िद "नाक़ाबिल" है,इसे 'न क़ाबिल' लिखना उचित नहीं, अगर 'न' का प्रयोग करना ही पड़े तो उसी सूरत में होगा जैसे मैंने उदाहरण दिया है, 'कामयाब' शब्द की ज़िद 'ना कामयाब' या "नाकाम'' होगा न कि ' न काम' या 'न कामयाब', उम्मीद है आप समझ गये होंगे ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 29, 2021 at 12:37pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी,

//प्रश्न सूर्य जैसे जीवन की धुरी के रुपक पर, मान्यवर आप, अपनी ग़ज़ल के माध्यम से लगा रहे हैं, और, पाठकीयता पर निरीह पाठक की योग्यता / क्षमता पर लगा रहे// 

नहीं, जी. सूर्य से कोई प्रश्न नहीं है.  क्योंकि सूर्य एकवचन कर्ता नहीं है. 

आप शेर की पंक्तियों पर तनिक और ध्यानस्थ तथा एकाग्र हों. 

Comment by Samar kabeer on July 29, 2021 at 12:35pm

जनाब सौरभ भाई, अभी ओबीओ के तरही मुशाइर: में व्यस्त हूँ, इसके बाद हाज़िर होता हूँ ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 29, 2021 at 12:27pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी उपस्थिति तथा सहमति का आभार. 

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 29, 2021 at 12:25pm

आदरणीय समर साहब,

आपकी इस विशद टिप्पणी पर हार्दिक आभार संप्रेषित करने के पहले अपनी उपस्थिति में हुए विलम्ब के प्रति अपने भाव साझा करना उचित समझता हूँ

//बहुत ख़ूब मतला हुआ है//

पता नहीं अभी तक की प्रतिक्रियाओं के सापेक्ष क्या कहा जाना उचित होगा.

हम ओबीओ पर यह नई प्रवृति देख रहे हैं कि पाठकीयता की आड़ में विद्वद्जन कुछ भी समझ-कह जा रहे हैं. हो सकता है एक विशिष्ट आयोजन के अलावा मेरा ही संपर्क इस पटल से एक अरसे से टूटा हुआ है. अन्यथा, ऐसी टिप्पणियों की हम तो सोच भी नहीं सकते थे. 

//इस तब्दीली का सबब ये है कि  'क़ाबिल' शब्द के पहले 'न' लघु में लेना उचित नहीं होता//

सुझाव उचित है. किंतु ऐसी कोई बाध्यता भी है क्या ? मुझे तो प्रतीत नहीं होता. ऐसी कोई व्यवस्था मिसरों में उच्चारण को निरापद रखने के लिहाज से एक सीमा तक उचित हो सकता है.

लेकिन क्या यह बाध्यता भी हो जाएगी ? तनिक चर्चा उचित होगी, भाईजी. 

कुल मिला कर प्रस्तुति पर आपने अपनी मुखर सहमति दी है, यह तोषदायी है. हार्दिक धन्यवाद. 

शुभातिशुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service