उदास तारा
1212, 1122, 1212, 22
न बदली छाई थी कोई न कुहरा छाया था
लपेटे चाँदनी अपनी क़मर भी निकला था
सजा था रात सितारों से आसमाँ सारा
उन्हीं के बीच था गुमसुम उदास इक तारा
उदास देख उसे दिल मेरा मचलने लगा
कि बात करने का उससे ख़याल पलने लगा
बुलाया मैंने इशारे से फिर क़रीब उसे
कहा बता तू ज़रा हाल ऐ हबीब मुझे
फ़लक पे चाँद सितारों के पास रहता है
है बात क्या कि तू फिर भी उदास रहता है
जो खा रहा है तुझे ग़म ज़रा दिखा तू मुझे
उदास क्यूँ है मेरे यार ये बता तू मुझे
ये बात सुनते ही मेरी वो मुस्कुराने लगा
फ़लक का हाल मुझे सारा वो सुनाने लगा
कहा ये तुम भी ग़लत सोचते हो लगता है
तुम्हें पता नहीं कितना यहाँ अँधेरा है
फ़लक पे सब लगे रहते हैं बस चमकने में
न आँसू पोछता है कोई भी सिसकने में
कोई न पूछता है ये कि हाल कैसा है
जो पढ़ ले दिल को वो साथी यहाँ न मिलता है
फ़लक पे शान से इक तारा जगमगाता था
वो हँसता रहता था सब पर ख़ुशी लुटाता था
कल उसका साथ अचानक ही हमसे छूट गया
ख़बर नहीं है किसी को कि क्यूँ वो टूट गया
जो ग़म था उसको किसी को बता नहीं पाया
न दर्द उसका किसी को यहाँ नज़र आया
मैं अपना दर्द यहाँ किसको अब दिखाऊँगा
क्या मैं भी ऐसे ही इक रोज़ टूट जाऊंगा
उदासी चेहरे पे मेरे ये छा रही है जो
यही वो बात है मुझको सता रही है जो
समझ के यार मेरे दिल की ये ज़बाँ तुमने
हज़ार शुक्र बचा ली है मेरी जाँ तुमने
अगर किसी ने यूँ दिल उसका भी पढ़ा होता
जो टूटा है वो सितारा चमक रहा होता
ये सुन के उसको गले से लगा लिया मैंने
पुकार लेना तुम्हें ग़म हो जब कहा मैंने
ये कह के उसको दुबारा से मैंने देखा जब
उदास तारा चमकने लगा था फिर से अब
उदास तारा चमकने लगा......
मौलिक अप्रकाशित
(अनीस अरमान )
Comment
जनाब लक्ष्मण धामी साहब नज़्म तक आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आ. भाई अनीस जी, सादर अभिवादन। अच्छी नज्म हुई है । हार्दिक बधाई ।
जनाब अमीरुद्दीन अमीर साहब नज़्म तक आने और पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, ममनून हूँ
जनाब समर कबीर साहब नज़्म तक आने और प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, आपकी इनायत है
बहुत ख़ूब! जनाब अनीस अरमान साहिब आदाब, उम्दा नज़्म कही आपने, मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर।
जनाब अनीस अरमान जी आदाब, अच्छी नज़्म लिखी आपने, बधाई स्वीकार करें ।
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