जिस दिन से इकतरफ़ा रिश्ता टूट गया
सुनते हैं वो पागल लड़का टूट गया.
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थामा ही था हाथ तुम्हारा मैंने बस
और अचानक मेरा सपना टूट गया.
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अब ये आँखें कोई ख्वाब नहीं बुनतीं
पिछली नींद में मेरा करघा टूट गया.
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अपने लालच को तुम काबू में रक्खो
वो देखो इक और सितारा टूट गया.
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एक ज़रा सी बात से बातें यूँ बिगडीं
फिर तो जैसे हर समझौता टूट गया.
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आप अदू से दूर हुए ये नेमत है
बिल्ली की क़िस्मत से छींका टूट गया.
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कह के मुकरना तेरी आदत होगी पर
सोच अगर लोगों का भरोसा टूट गया.
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तेरी याद की गहरी खाई से बाहर
आते ही आते फिर रस्सा टूट गया.
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“नूर” मेरा उस नूर से मिल जाएगा फिर
जस पल मेरे जिस्म का पिंजरा टूट गया.
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निलेश "नूर"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
धन्यवाद आ. समर सर
धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन साहब
धनयवाद आ. दण्डपाणी जी
जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब ' अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें I
जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब, ख़ूबसूरत, नफ़ीस और आम-फ़ह्म ग़ज़ल हुई है शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं। सादर।
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