ज़ुल्म सहना छोड़ कर इन्कार करना सीख ले
है अगर ज़िन्दा पलटकर वार करना सीख ले.
.
एक नुस्ख़ा जो घटा देता है हर दुःख की मियाद
सच है जैसा वैसा ही स्वीकार करना सीख ले.
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मज़हबों के खेल में होगी ये दुनिया और ख़राब
अपने रब का दिल ही में दीदार करना सीख से.
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तन है इक शापित अहिल्या चेतना के मार्ग पर
राम सी ठोकर लगा.. उद्धार करना सीख ले.
.
नफ़रतों की बलि न चढ़ जाए तेरी मासूमियत
मान इन्सानों को इन्सां प्यार करना सीख ले.
.
लग न जाए दाग़ इस दुनिया का तेरी रूह पर
बिन छुए इसको ये दरिया पार करना सीख ले.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
जानकारी के लिए आभार आ. चेतन प्रकाश जी,
मैं स्थापित चलन के अनुरूप उसे दुःख (२) ही गिनूँगा
सादर
आदाब, भाई नीलेश शेवगांवकर साहब! महर्षि पाणिनि की व्याकरण के अनुसार विसर्ग ( : ) लगने पर अक्षर की मात्रा बढ़ जाती है ! तद्नुसार दुख विसर्ग सहित ( दु:ख ) होने पर मात्रा भार तीन (3) हो जाएगा, जो आपके दूसरे शे'र ऊला मिसरा को बह्र से ख़ारिज करता है ! सादर
आ. चेतन प्रकाश जी
मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि छन्द में विसर्ग की मात्रा कैसे गिनी जाती है.. मैं तो साधारण बोलचाल वाली ज़बान में लिख देता हूँ.. विसर्ग की मात्रा गणना पर और जानकारी दे कर अनुगुहित करें
सादर
आदाब, भाई नीलेश शेवगांवकर साहब, आपने वस्तुत: मेरी बात की पुष्टि की ! आपने अपनी ग़ज़ल के दूसरे शे'र के ऊला में 'दु:ख' लिखा है , 'नासिर काज़मी की तरह 'दुख' नहीं ! मेरी शंका का आधार महर्षि पाणिनि हैं जो विसर्ग ( : ) को मात्राओं में गिनते हैं ! सादर
आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,
आपके त्रुटी बताने पर एक मिसरा तरमीम किया है.
सादर धन्यवाद
आ. चेतन प्रकाश जी
आप को ग़ज़ल पसंद आई यह जानकार प्रसन्नता हुई ..
.
'दु:ख हमेशा ग़ज़ल में 2 मात्रा पर बाँधा जाता है और उसे दुख की तरह लिखा जाता है.. मैं शब्दों को लिखने के प्रति विशेष आग्रही हूँ अत: दुख को दुःख लिखा है जैसा कि उसे लिखा जाना चाहिए ..
.
अपनी धुन में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ.
,
तेरी गली में सारा दिन
दुख के कंकर चुनता हूँ.. नासिर काज़मी
.
सादर
आदाब, आदरणीय भाई नीलेश जी, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है ! एक से एक बढकर शे'र हुए हैं! " तन है एक शापित अहिल्या चेतना के मार्ग पर / राम सी ठोकर लगा उद्धार करना सीख ले " वाहहहहह क्या बात है!
कृपया मेरा एक शंका समाधान भी करें, जो दूसरे शेर में 'दु:ख' की मात्रा लेकर है! सादर
आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,
यदि मैं खिन्न होता तो आप को पढने का सही तरीका बताता क्या?
रही बात उस्तादी की, तो विधा का कोई उस्ताद नहीं होता.. हर कोई छात्र होता है.. कोई KG का तो कोई कॉलेज का
सादर
धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी
//आप शायद और को अबतक उर पढ़ना नहीं सीखें हैं और यकीनन बलि को बली पढ़ रहे हैं..
आशा करता हूँ कि आप अधिक से अधिक ग़ज़लें पढ़ेंगे और किस तरह पढ़ा जाता है वह आर्ट सीखेंगे.//
धन्यवाद.. आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी.
मैं ओ बी ओ पर आप जैसे उस्तादों से सीखने ही तो आया हूँ, जहाँ समझ नहीं आयेगा पूछता रहूँगा, खिन्न मत होइयेगा। सादर।
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