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ग़ज़ल: आख़िरश वो जिसकी खातिर सर गया

2122 2122 212

आख़िरश वो जिसकी ख़ातिर सर गया

इश्क़ था सो बे वफ़ाई कर गया

आरज़ू-ए-इश्क़ दिल में रह गई

जुस्तजू-ए-इश्क़ से दिल भर गया

दिल की दुनिया दर्द का बाजार है

दर-ब-दर कहते हुए मुज़्तर गया

हर दफ़ा सोचा की नजरें फेर लूँ

हर दफ़ा सज़दे में तेरे सर गया

भूलने की कोशिशें की थीं मगर

जो मिला वो ज़िक्र तेरा कर गया

ज़िंदगी भी आख़िरश तंहाई है

मैं भला तंहाई से क्यों डर गया

मैंने तेरी याद में ही काट दी

लौटना था पर न अपने घर गया

अब मगर दिल में कोई जुम्बिश नहीं

इतनी ख़ामोशी की जैसे मर गया

मौलिक व अप्रकाशित

आज़ी तमाम

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Comment by Aazi Tamaam on January 23, 2022 at 11:17am

सहृदय शुक्रिया आदरणीय नीलेश जी

मैंने ' में ' पर इतना गौर नहीं किया था

आपका तहे दिल से शुक्रिया जी मैं आपसे सहमत हूँ में भर्ती का हो रहा है

बदलने का प्रयास करता हूँ

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on January 23, 2022 at 9:21am

आ. आज़ी भाई,
आख़िरश का अर्थ ही अंतत: हुआ ..फिर इस में //में// का क्या काम .

ग़ज़ल के लिए बधाई 

Comment by Aazi Tamaam on January 18, 2022 at 1:35am

सहृदय शुक्रिया आ ब्रज जी सब आप लोगों का मार्गदर्शन है

सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 17, 2022 at 11:07pm

वाह बड़ी ही अच्छी ग़ज़ल कही भाई आजी...बधाई

Comment by Aazi Tamaam on January 16, 2022 at 5:28am

बहुत बहुत शुक्रिया आ अमीर जी ग़ज़ल तक आने व हौसला अफ़ज़ाई करने के लिये

सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 13, 2022 at 4:53pm

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं।

"भूलने की कोशिशें की थीं मगर

जो मिला वो ज़िक्र तेरा कर गया" वाह... बहुत ख़ूब।

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