दोहा सप्तक ....
नारी अब सक्षम हुई, मुक्त हुई परवाज़ ।
विश्व पटल पर गूँजती, नारी की आवाज़ ।।
नर से नारी माँगती, बस थोड़ा सा प्यार ।
बदले में उसको मिला, धोखे का संसार ।।
चूल्हा चक्की छोड़ दी, तोड़े बंधन तार ।
अब नारी ने रच दिया, एक नया संसार ।।
अम्बर को छूने चली, कल की अबला नार ।
नर के पौरुष का हुआ, तार- तार संसार ।।
नारी ताकत पुरुष की , स्वयं नहीं कमजोर ।
अनुपम कृति वो ईश की, वो आशा की भोर ।।
ममता का संसार है, सृजन शक्ति आधार ।
वक्त पड़े शृंगार भी ,बन जाता अंगार ।।
उड़ते ही घायल हुई , नारी की परवाज ।
वर्तमान की सोच का, दोषी सभ्य समाज ।।
सुशील सरना /12-3-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके दोहों का विन्यास आशान्वित कर रहा है. हार्दिक बधाई.
नारी ताकत पुरुष की .. ऐसे चरणान्त से बचने का प्रयास करें. छंद के अभ्यास के क्रम में पद-विन्यास के साथ-साथ उसकी गेयता के प्रति संवेदनशीला होना होता है. दोहे का विषम चरण रगणात्मक अथवा वाचिक रगणात्मक होना दोहे की गेयता को अक्षुण्ण रखता है.
वस्तुतः ऐसे महीन बिन्दुओं के प्रति आजके कई तथाकथित विद्वान या तो सचेत नहीं रहते, या इसे नकार कर आगे बढ़ जाते हैं. ऐसा अभ्यास की गहनता को भी कमतर करता है, आदरणीय.
शुभातिशुभ
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। उत्तम दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई ।
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