अहंकार की हार हो, जीते नित्य विनीत।
इतना ही संदेश दे, होली की हर रीत।१।
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दहन होलिका का करो, होली के त्योहार।
तजकर ही होली मने, पाखण्डी व्यवहार।२।
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रंग अनोखे थाल भर, हर घर गाती फाग।
होली कहती मिल गले, भेद भाव को त्याग।३।
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कहकर बाँटें रंग ढब, मत रख खाली हाथ।
निखरा लाल पलास तो, सेमल आया साथ।४।
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होली सब को पर्व हो, चाहे बिलकुल एक।
मन में उठी उमंग जो, उस के अर्थ अनेक।५।
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चाहे सूखी खेलना, या फिर पानी डाल।
पर्व सनातन की रहे, मर्यादा हर हाल।६।
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पिचकारी करती कहे, सतरंगी बौछार।
मने सभी का हर्ष से, होली का त्यौहार।७।
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मुख पर साथ अबीर के, मल दे रंग गुलाल।
विगत वर्ष सा ना रहे, मन में शेष मलाल।८।
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कहे थाल भर रंग ले, सजनी मन की हूक।
अबके होली के दिवस, अवसर से मत चूक।९।
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पावन फागुन मास में, जुटे सभी नर-नार।
हुआ नृत्य संगीत से, सतरंगी त्योहार।१०।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। आपकी उपस्थित निरंतर प्रयास के लिए उत्साहित करती है। आपके द्वारा इंगित त्रुटियों में सुधार का प्रयास किया है । पुनः मार्गदर्शन कीजिए। सादर...
दहन होलिका साथ कर, पाखण्डी व्यवहार
तब जाकर सार्थक बने, होली का त्योहार।२। //.... सम्प्रेषण दोष के कारण कथ्य उभर कर नहीं आ पा रहा है.//
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कहकर बाँटे रंग सब, मत रख खाली हाथ। //........ यहाँ ’ढब’ से क्या तात्पर्य है, आदरणीय ? //
दिखता होली पर्व है, सब के हित यूँ एक।
मन में उठी उमंग जो, उस के अर्थ अनेक।५।//........... प्रथम चरण की संप्रेषणीयता स्पष्ट नहीं है. //
अहंकार की हार हो, जीते नित्य विनीत।
इतना ही संदेश दे, होली की हर रीत।१। .. ऐसे शुभ-संदेश दे
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दहन होलिका का करो, होली के त्योहार।
तजकर ही होली मने, पाखण्डी व्यवहार।२। .... सम्प्रेषण दोष के कारण कथ्य उभर कर नहीं आ पा रहा है.
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रंग अनोखे थाल भर, हर घर गाती फाग।
होली कहती मिल गले, भेद भाव को त्याग।३। ...... बहुत खूब
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कहकर बाँटें रंग ढब, मत रख खाली हाथ। ........ यहाँ ’ढब’ से क्या तात्पर्य है, आदरणीय ?
निखरा लाल पलास तो, सेमल आया साथ।४।
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होली सब को पर्व हो, चाहे बिलकुल एक। ........... प्रथम चरण की संप्रेषणीयता स्पष्ट नहीं है.
मन में उठी उमंग जो, उस के अर्थ अनेक।५।
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चाहे सूखी खेलना, या फिर पानी डाल।
पर्व सनातन की रहे, मर्यादा हर हाल।६। ........ सही सुझाव ..
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पिचकारी करती कहे, सतरंगी बौछार। ........... करती रहे
मने सभी का हर्ष से, होली का त्यौहार।७। ......... बहुत सही
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मुख पर साथ अबीर के, मल दे रंग गुलाल।
विगत वर्ष सा ना रहे, मन में शेष मलाल।८। ....... बहुत खूब
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कहे थाल भर रंग ले, सजनी मन की हूक।
अबके होली के दिवस, अवसर से मत चूक।९। ... क्या बात है !
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पावन फागुन मास में, जुटे सभी नर-नार।
हुआ नृत्य संगीत से, सतरंगी त्योहार।१०। ...... अवश्य ! ..
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपके इस प्रयास और होली संदर्भित दोहों के लिए हार्दिक बधाई.
शुभ-शुभ
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