कजरा वही गज़रा वही आँखों में है नर्मी वही
पायल वही झुमका वही साँसों में है गर्मी वही
टिका वही बिंदी वही गालो में है लाली वही
काजल वही कंगन वही कानो में है बाली वही
चुनड़ वही घागर वही कमर पर है गागर वही
ताल वही और चाल वही घुँघराले से बाल वही
रूप वही और रंग वही चोली अबी भी तंग वही
अंग वही और ढंग वही रहती हरदम है संग वही
तेज़ वही तेवर वही पहने हुए ज़ेवर वही
साज वही श्रृंगार वही रूप पर अपने नाज़ वही
बोली वही गाली वही नैनो की है दुनाली वही
दिलबर वही दिलदार वही है धड़कन की रफ़्तार वही
सुर वही सरगम वही गीतों के है बोल वही
बूँद वही बौछार वही अब भी उसका प्यार वही
आस वही और प्यास वही जीवन का है उल्लास वही
हाथ वही और साथ वही बन जाए जो बात वही
नज़रे वही और लोग वही दिल को लग जाए रोग वही
दवा वही और दुआ वही बह जाए जो हवा वही
मान वही अपमान वही मेरे मन का अभिमान वही
दान वही और ध्यान वही ईश्वर का है वरदान वही
दिन वही और रात वही धरती और आकाश वही
आम वही और ख़ास वही जीवन का है एहसास वही
दूर वही और पास वही मिल जाने का अंदाज़ वही
यहाँ वही और वहाँ वही दिख जाए हर जगह वही
रोग वही और योग वही लग जाए तो जोग वही
मिलन वही है विरह वही लोभ वही और भोग वही
पाप वही है पुण्य वही क्षुब्ध मन का शुन्य वही
मिल जाए तो प्रेयसी और ना मिलने पर स्वप्न वही
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
Comment
अनुपम सृजन आदरणीय
आदरणीय अमन सिन्हा जी....कहे को मान देने के लिए बहुत आभार......शुभम भवतु
आदरणीय Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" जी
आपकी कही सभी उपरोक्त बातें मुझे मान्य है। मेरा प्रयत्न भी यही रहता है। अपनी अशुद्धियों पर लगातार काम कर रहा हूँ। और सुधार भी हो रहा है। शब्दकोष की सहायता भी लेता रहुंगा। ताकी ऐसी गलतियां ना हो।
अमन सिन्हा जी.....यद्यपि आदरणीय लगा कर संबोधन की परिपाटी, ओबीओ मंच का परिचायक है, किन्तु मुझे लगा कि आप से भी कुछ सीखा जाना चाहिए.. सो.....सीधे लिखना पड़ा,----
अमन सिन्हा जी।
तो...भाई जी.....एकदम स्पष्ट बात यह है कि-----
भाषा और उसकी मर्यादा जिसे वर्तनी और व्याकरण कहते हैं, का अध्ययन करें------यही उचित होगा।
जहाँ तक मुझे लगता है....आपको अपनी इस रचना को स्वयं कई बार पढ़ना चाहिए.....वह भी सामने शब्दकोश रखकर। इसका लाभ यह होगा कि आप जान पाएंगे कि------
टिका नहीं, टीका....चुनड़ नहीं चूनर....घागर नहीं...नज़रे नहीं....नज़रें.....शुन्य नहीं...शून्य.....शुद्ध स्वरूप हैं।
और भी बहुत कुछ है जो लिखते-सीखते आ जाएगा...... लेकिन
एक और सुझाव है---- लिखते-सीखते रहने की प्रक्रिया में सीखने का सङ्कल्प मनस नगर में होना बहुत आवश्यक होता है।
बहुत सी बातें आदरणीय मिथिलेश सर और आदरणीय अग्रज सौरभ पाण्डेय जी ने कही हैं......जिनकी प्रतिक्रिया में आप नाराज़ और क्रुद्ध से लगे????
यह मंच सीखने से अधिक सिखाने का मंच है......और यहाँ ऐसे ही सिखाया जाता है......जिसे इस पद्धति से इंकार होता है उन्हें मंच निकालता नहीं है....वह स्वतः निकल जाते हैं।
फिलहाल........एक और सुझाव के साथ बात समाप्त कर रहा हूँ-----
जिसे सीखने की अभीप्सा होती है उसे झुकने की कला सीखनी ही होती है।
// आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
मैं सदा अपने से बडो को सम्मान देने पर यकिन रखता हूँ। जब भी आपने मुझे मेरी खामियों से अवगत करवाया है मैंने उसे एक सलाह के तरह ही उसे लिया है और आगे भी लेता रहुंगा।//
आदरणीय अमन जी, आपकी बस एक यही स्वीकारोक्ति आपसे मेरी अपेक्षाओं का प्रत्युत्तर है. बाकी, सारा कुछ अन्यथा-कर्म का अनायास उदाहरण है.
आदरणीय मिथिलेश भाई ने, अच्छा है, आवश्यक उदारता के साथ अपेक्षित विस्तार के साथ बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है.
विश्वास है, आपको अब मेरे इंगितों के आशय, इस पटल की सुगढ़ परिपाटी से संबंधित आदरणीय मिथिलेश जी के स्पष्टीकरण से बहुत कुछ स्पष्ट हो चुका होगा.
आगे, आप रचनाकर्म की अपेक्षाओं पर ध्यान दें. विशेषकर, अक्षरियों को लेकर आपको संयत और सचेत रहना होगा. फिर हिंदी भाषा के व्याकरण के नियमों को लेकर सजग रहें. वस्तुत: ओबीओ के पटल पर 'चलताऊ' कुछ भी नहीं चलता. अन्यथा, केवल पोस्ट करना ही किसी का ध्येय हो तो इस पटल पर विगत ग्यारह वर्षों में कई-कई रचनाकारों को भरपूर स्थान दिया गया है.
शुभातिशुभ
आदरणीय अमन सिन्हा जी, नमस्कार, आपका रचनाकर्म भविष्य की संभावनाओं से भरा हुआ है इसके लिए आप बधाई के पात्र है. एक विनम्र अनुरोध है, आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे. आपने लिखा है-
//ये आपके पटल की खामी है की इसमे मैं अपने टिप्पणी कर्ता से सिधे संवाद नही कर सकता। //
आदरणीय यहाँ सभी सीधे संवाद ही करते हैं बस उसकी एक नियत परिपाटी है जिसका पालन हम सभी ओबीओ के सदस्य करते हैं.
@ की परिपाटी सोशल मीडिया के कुछेक प्लेटफार्म पर इसलिए है क्योकिं @ लिखने के बाद लिखा नाम सम्बंधित की प्रोफाइल को लिंक कर देता है और टैग जुड़ जाता है लेकिन इस मंच पर ऐसी कोई सुविधा नहीं है और न उसकी आवश्यकता है. यहाँ सभी सीखने सिखाने वाले एक दुसरे को आदरणीय ..... जी से संबोधित करते हैं जो परिपाटी और स्वस्थ्य परंपरा के रूप में स्थापित हो चुकी है और इसका सभी पालन करते हैं.
दूसरी बात
//किंतु मेरा "@(नाम) के बाद साहब" लगाना आपको अपमान जनक कैसे लग सकता है? //
आदरणीय यह अपमानजनक नहीं है किन्तु इस मंच पर मान्य नहीं है. अब तक सोशल मीडिया पर प्रचलित ऐसे चलताऊ ढंग से की गई टिप्पणियों को मंच पर मान्य नहीं किया गया है. जब पटल पर अपनी स्वस्थ्य परिपाटी उपलब्ध है तो फिर ऐसे सोशल मीडियाई संकेतों को क्यों प्रयुक्त किया जाये? आप लिंक सहित ही किसी को संबोधित करना चाहते हैं तो इस तरह (आदरणीय AMAN SINHA जी )लिख सकते हैं.
तीसरी बात यह कि आपने लिखा है -
//आप सभी वरिष्ठ लोग मुझसे ज्यादा अनुभवी और ज्ञानी है, किंतु इस तरह बे मतलब किसी बात को लेकर राई का पहाड बनाना सही नही लगता। //
आदरणीय यह एक आपस में सीखने सिखाने वाला एक परिवार है जहाँ आपसी संबोधन की अपनी एक परंपरा है और मंच की गरिमा के लिए इसे सभी महत्त्व देते हैं. इसलिए यह कोई बेमतलब की बात नहीं, बल्कि आपसी संवाद को गरिमापूर्ण समझ के साथ विकसित करने की परिपाटी है.
और अंत में
//बाकी आपकी इच्छा, आप इस पटल के कर्ता-धर्ता मालुम पडते हैं, आप चाहे तो मुझे इस पटल से निष्कासित कर दिजिए और मेरी रचनायें भी मिटा दिजिए। //
आदरणीय संवाद का यह लहजा एक साहित्यिक अभ्यासी को शोभा नहीं देता. हम सभी यहाँ सीखते हैं और मंच के सभी वरिष्ठ सदस्य हमें सीखने के लिए सदैव प्रेरित करते हैं. एक साहित्यिक अभ्यासी के लिए अनुशासन पहली और बड़ी सीख होती है. इस मंच से लम्बे समय से सीख रहा हूँ और अनुभव की बात कहता हूँ कि यहाँ का अनुशासन आपकी लेखनी के साथ आपके व्यक्तित्व को भी निखार देता है. आप स्वयं एक अच्छे रचनाधर्मी हैं. आशा है मैं अपनी बात रख सका हूँ और इसे अन्यथा नहीं लेंगे. सादर.
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,
मैं सदा अपने से बडो को सम्मान देने पर यकिन रखता हूँ। जब भी आपने मुझे मेरी खामियों से अवगत करवाया है मैंने उसे एक सलाह के तरह ही उसे लिया है और आगे भी लेता रहुंगा।
किंतु मेरा "@(नाम) के बाद साहब" लगाना आपको अपमान जनक कैसे लग सकता है?
ये आपके पटल की खामी है की इसमे मैं अपने टिप्पणी कर्ता से सिधे संवाद नही कर सकता।
मेरी कोशिश यही थी की मैं हरेक टिप्पणी करने वाले मेरे पाठक को सिधे धन्यवाद कर सकूंं।
ये एक दुसरे से परस्पर वार्ता करने का एक माध्यम मात्र है।
आप सभी वरिष्ठ लोग मुझसे ज्यादा अनुभवी और ज्ञानी है, किंतु इस तरह बे मतलब किसी बात को लेकर राई का पहाड बनाना सही नही लगता।
बाकी आपकी इच्छा, आप इस पटल के कर्ता-धर्ता मालुम पडते हैं, आप चाहे तो मुझे इस पटल से निष्कासित कर दिजिए और मेरी रचनायें भी मिटा दिजिए।
सिखना तो एक अनरवत क्रिया है जो हर व्यक्ति हर उमर में, हर पडाव मे कर सकता है।
अमन सिन्हा
आदरणीय अमन सिन्हा जी, यह समझ का दोष है कि आप अपनी गलतियाँ समझना नहीं चाहते हैं. फिर तो सुधाार का कोई प्रश्न ही नहीं है.
सम्बोधन में @ आदि का प्रयोग ट्विटर जैसे पटल का व्यवहार है. इसे ओबीओ पर प्रयुक्त करना और बलात बँधे रहना आपकी जिद है.
आगे मैं कुछ न कहूँगा. बल्कि आप ओबीओ के अनुसार जब सुुधार कर लेंगे तो पुन: आप रचनाएँ और टिप्पणियाँ आदि पोस्ट करने लगेंगे.
@Saurabh Pandey साहब,
यह एक टाइपिंग त्रुटी मात्र है,
यह त्रुटी एक गैरइरादतन घटना मात्र है।
फिर भी मैं आप सभी सज्जनों से इस त्रूटी के लिये क्षमा चाहुंगा।
@Sameer Kaber .. ??
आदरणीय अमन सिन्हाजी, आपको अपनी एक टिप्पणी के माध्यम से हमने पहले भी इस बिन्दु के प्रति सचेत किया था, कि इस पटल पर सदस्य-पाठकों-रचनाकारों को लेकर चलताऊ या ऐसा कोई सम्बोधन या इंगित मान्य नहींं है जैसा कि आप लगातार करते आ रहे हैं. आपने अभी तक उस टिप्पणी को नहीं देखी और पढ़ी है तो यह आपकी रचनागत असंवेदनशीलता ही समझी जाएगी.
बाकी, प्रस्तुत रचना पर आपको शुभकामनाएँ.
यह अलग बात है कि इस रचना को व्यवस्थित रचना के मानक पर रखने के लिए आपके रचनाकार को अभी और अभ्यासरत रहना होगा. इसके प्रति आप तत्पर रहें.
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