२२१/२१२१/२२१/२१२
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अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए
जीवन को एक दृढ़ नया आधार दीजिए।।
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व्याख्या गुणों की कीजिए दुर्गुण निथार के
सारे जगत को मान्य हो वह सार दीजिए।।
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पथ से परोपकार व सच के न दूर हों
नैतिक बलों की शक्ति का संचार दीजिए।।
*
अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए।।
*
गुरुकुल बृहद सा गेह है मुझको लगा यही
अनुरूप घर के आप हमें प्यार दीजिए।।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई समर जी, पुनः उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार।
भाई लक्ष्मण जी, मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।
'पथ से परोपकार व सच के न दूर हों'
ये मिसरा ठीक है ।
'अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक़्त पे फटकार दीजिए'
ये शे'र ठीक है ।
आ. भाई समर जी सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद आपकी उपस्थिति से मंच पर फिर रौनक आ गयी है। गजल पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार।
'अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए' --सर्वोत्तम सुझाव है।
//
'भटकें न पथ से सत्य व परमार्थ के कभी'-- इस मिसरे की बह्र चेक करें I //
*इसमें सुधार किया है देखिएगा । कौन सा अधिक उपयुक्त है बताइएगा।
/भटकें परोपकार व पथ से न सत्य के/
//पथ से परोपकार व सच के न दूर हों//
'(देना दुलार अच्छे को बढ़ते रहें नियत
'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, भाव भी स्पष्ट नहीं देखिएगा I )
*इसे इस प्रकार देखें-
//अच्छा करें तो हौसला देना दुलार कर
करदें गलत तो वक्त पे फटकार दीजिए//
आ. भाई अमीरुददीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्चा है, बधाई स्वीकार करें I
अआपने ग़ज़ल के अरकान ग़लत लिखे हैं, इसके अरकान हैं २२१ २१२१ १२२१ २१२
'लेकर शरण में आप की आकार दीजिए'--इस निसरे का वाक्य विन्यास ठीक नहीं, उचित लगे तो यूँ कहें :-
'अपनी शरण में लीजिए आकार दीजिए'
'भटकें न पथ से सत्य व परमार्थ के कभी'-- इस मिसरे की बह्र चेक करें I
'देना दुलार अच्छे को बढ़ते रहें नियत
सुधरे न भूल वक्त पे फटकार दीजिए'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, भाव भी स्पष्ट नहीं देखिएगा I
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, शिक्षक दिवस पर अच्छी रचना हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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