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दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .

दशहरा पर्व पर कुछ दोहे. . . .

सदियों से लंकेश का, जलता दम्भ  प्रतीक ।
मिटी नहीं पर आज तक, बैर भाव की लीक।।

सीता ढूँढे राम को, गली-गली में  आज ।
लूट रहे हर मोड़ पर, देखो रावण लाज ।।

 मन के रावण के लिए, बन जाओ तुम राम।
अंतस को पावन करो,हृदय बने श्री धाम।।

कहते हैं रावण बड़ा, जग में था विद्वान ।
पर नारी के मोह ने, छीनी उसकी जान ।।

माँ सीता का कर हरण, इठलाया  लंकेश ।
मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति अवधेश ।।

सुशील सरना / 5-10-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on October 13, 2022 at 12:15pm
आदरणीय समर कबीर जी आदाब, सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय जी
Comment by Samar kabeer on October 7, 2022 at 11:32am

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on October 6, 2022 at 9:54pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने और अपना अमूल्य सुझाव देने का दिल से आभार । बहुत सुंदर सुझाव । हार्दिक आभार सर ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 5, 2022 at 9:01pm

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। समयानुकूल सुन्दर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई। 

इस दोहे को ऐसा करने से प्रासंगिकता और बढ़ जायेगी विचार करें-

माँ सीता  का  कर हरण , इठलाया लंकेश ।
मिटा दिया फिर राम ने, लंकापति अवधेश 

Comment by Sushil Sarna on October 5, 2022 at 7:34pm
आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर प्रणाम सर सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।सर दूर चला लंकेश कैसा रहेगा
Comment by Chetan Prakash on October 5, 2022 at 4:38pm

नमस्कार,  भाई  सुशील सरना, सभी  दोहे  अच्छे  लगे, किन्तु  पाँचवे  दोहे के  दूसरे चरण में प्रवाह बाधित हुआ है, इसे"  चला चले  लंकेश "  यदि आप  कर लें, दोष दूर  हो जाएगा  ! इति ।

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