गीतिका
आधार छंद - चौपई (जयकरी छंद )-15 मात्रिक -पदात-गाल
साँसें जीवन का शृंगार ।
बिना साँस सजती दीवार ।
कब जीवित का होता मान ,
चित्रों को पूजे संसार ।
मिलता अपनों से आघात ,
इनका प्यार लगे बेकार ।
पल-पल रिश्ते बदलें रूप ,
मतभेदों से पड़ी दरार ।
बड़ा अजब जग का दस्तूर ,
भरे प्यार में ये अंगार ।
सुशील सरना / 17-10-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत ही बढ़िया आदरणीय सुशील जी...बधाई
बहुत ही सुन्दर गीतिका, मित्र सुशील जी। हार्दिक बधाई।
आदरणीय सुशील सरना साहब सुंदर गीतिका रची है. सादर
आदरणीय सुशील कुमार सरना जी आदाब, वास्तविकता पर आधारित सुंदर गीतिका हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
कब जीवित का होता मान ,
चित्रों को पूजे संसार । ...बहुत ख़ूब।
इस अच्छी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय सुशील सरना जी।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी गीतिका हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गीतिका हुई है। हार्दिक बधाई।
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