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गीतिका
आधार छंद - चौपई (जयकरी छंद )-15 मात्रिक -पदात-गाल

साँसें   जीवन  का  शृंगार ।
बिना साँस सजती दीवार ।

कब जीवित का होता मान ,
चित्रों   को   पूजे   संसार ।

मिलता अपनों  से  आघात ,
इनका  प्यार   लगे   बेकार  ।

पल-पल  रिश्ते  बदलें  रूप ,
मतभेदों   से  पड़ी दरार ।

बड़ा अजब जग का दस्तूर ,
भरे   प्यार   में  ये   अंगार ।

सुशील सरना / 17-10-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on November 3, 2022 at 12:44pm
आदरणीय बृजेश जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर
Comment by Sushil Sarna on November 3, 2022 at 12:43pm
आदरणीय विजय निकोर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2022 at 6:54pm

बहुत ही बढ़िया आदरणीय सुशील जी...बधाई

Comment by vijay nikore on November 1, 2022 at 12:05pm

बहुत ही सुन्दर गीतिका, मित्र सुशील जी। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on October 31, 2022 at 12:53pm
आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by Ashok Kumar Raktale on October 27, 2022 at 5:17pm

आदरणीय सुशील सरना साहब सुंदर गीतिका रची है. सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 23, 2022 at 10:01am

आदरणीय सुशील कुमार सरना जी आदाब, वास्तविकता पर आधारित सुंदर गीतिका हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Mahendra Kumar on October 21, 2022 at 11:22am

कब जीवित का होता मान ,
चित्रों   को   पूजे   संसार । ...बहुत ख़ूब।

इस अच्छी प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय सुशील सरना जी। 

Comment by Samar kabeer on October 19, 2022 at 11:43am

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी गीतिका हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 4:02am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर गीतिका हुई है। हार्दिक बधाई।

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