For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत -७ (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।
जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।
*
तितली फूल हवा  को  भी  है इस का पूरा भान।
जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।
आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।
इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।
*
फागुन गाये फाग भला  क्या सावन धोये पाँव।
मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।
गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।
उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।
*
तपते सूरज से विनती की अड़ बैठी बरसात।
लुकाछिपी में चाँद सुने ना, मन की कोई बात।।
नदिया बिफरी  राह  रोकती  नाव  न है पतवार।
कंटक पथ में क्या कम हैं जो आयी निष्ठुर शीत।।
*
किसने देखी फटी बिवाई किसने मन की पीर।
जो भी आया उपहारों  को  पाया बड़ा अधीर।।
कौन सुझाये  समझ  सलौनी  टूटे  मन की गाँठ।
अर्थ जनित सब रिश्ते नाते अर्थ जनित हर प्रीत।।
*******
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 285

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2022 at 7:14pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 28, 2022 at 6:56pm

बहुत सुन्दर सरस गीत है आदरणीय धामी जी...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 6:08am

आ. भाई सुशील जी सादर अभिवादन। आपको गीत भाया, लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 6:06am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थित और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by Sushil Sarna on December 27, 2022 at 8:56pm
वाह आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत ही सुंदर गीत हुआ है । हार्दिक बधाई सर
Comment by Samar kabeer on December 25, 2022 at 6:48pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा गीत हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service