For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भगवान परशुराम और कर्ण

हवन की अग्नि बुझ चुकी थी

शिक्षा प्राप्ति की आई बात
गुरू द्रोण ने जब इंकार किया तो
भगवान परशुराम की आई याद।।

नीड़ो में था कोलाहल जारी
फूलों से महका उपवन
ज्ञान की जिज्ञासा थी मन में भड़की
निकला खोज में जिसकी कर्ण।।

द्वार तृण-कुटी पर परशु भारी
आभाशाली-भीषण जो भारी भरकम
धनुष-बाण एक ओर टंगे थे
पालाश, कमंडलू, अर्ध अंशुमाली एक पड़ा लौह-दंड।।

अचरज की थी बात निराली
तपोवन में किसनें वीरता पाली
धनुष-कुठार संग हवन-कुंड क्यूँ
सन्यास-साधना में किसने तलवार निकाली।।

श्रृंगार वीरों के तप और परशु
तप का अभ्यास जाता न खाली
तलवार का संबंध होता समर से
फिर किसी योगी ने इसे क्यों संभाली।।

अचंभित था कर्ण सोच-सोचकर
श्रृद्धा अजिन दर्भ पर बढ़ती जाती
परशु देख थोड़ा मन घबराता
देख युद्ध-तपोभूमि ने उलझन डाली।।

सोच-विचार थोड़ी बुद्धि लगाई
तपोनिष्ठ संग यज्ञाग्नि जलाई
महासूर्य से तेज था जिसका
जिसकी कुटिल काल-सी क्रोधाग्नि बताई।।

वेद-तरकस संग कुठार विमल
श्राप-शर थे सम्बल भारी
पार न पाया जिस व्रती-वीर-प्रणपाली नर का
परम पुनीत जो भृगु वंशधारी।।

राम सामने पड़े तो परिचय पूछा
कर्ण हूँ मैं, ब्राह्मण जाति
शिक्षा पाने का हूँ अभिलाषी
शिष्य स्वीकार करो मुझे घट-घट वासी||

स्वीकार करूँ तुम्हें मैं शिष्य कैसे
क्या कष्टों में रह पायेगा
कठोर हृदय मेरा शख्त अनुशासन
क्या कोमल हृदय सह पायेगा||

वृद्ध हूँ लेकिन मेरी क्षमता कितनी
क्या कभी तू ये पायेगा
हर पल हर क्षण कष्ट मरण सा
सहते सहते मर जायेगा।।

कितनी कठोरता कितना क्रोध है
भष्म पल में हो जायेगा
तुष्टिकर न अन्न खायेगा
फिर जीवित तू कैसे रह पायेगा।।

लहू जलेगा मन-हृदय जलेगा
सुख-नींद-आराम सब तजना पड़ेगा
धीरज की तेरी परीक्षा होगी
क्या सफल इसमे हो पायेगा||

सुनता गुणता सारी बातें
कर्ण ने मन में ठान लिया था
चाहे कितनी तकलीफें राह में आए
शिक्षा गुरु से पाकर रहूँगा||

स्वीकार करों प्रभु शरण में अपनी
जिज्ञासु कर्ण सब कर्म करेगा
नींद-सुख-चैन क्या प्रभु
एक आदेश पर अपने प्राण भी तजेगा।।

गुरू भक्ति मेरी सच्ची पवित्र है
जिसमें कभी न कोई खोट मिलेगा
अनुशासित मैं वक्त पाबंध
आपकी आज्ञा पर कर्ण मर मिटेगा।।

प्रसन्न हूँ स्वीकार मैं करता
बड़ा शिष्य मेरा तू कहलायेगा
जो भी मेरे पास है कर्ण
अर्पण तेरा गुरू तुझको कर जायेगा।।

वेद-पुराण संग संसार-ज्ञान सब
निपुण अस्त्र-शस्त्र विद्या में हो जायेगा
न तेरे जैसा कोई महावीर भी होगा
तू वीर ऐसा कहलायेगा।।

दिन पर दिन जैसे-जैसे बीत रहे
ज्ञान के पट सब खुलते गए
जितना पाता कम ही लगता
गृहण कर्ण सब कुछ करते गए।।

है अनुशासित जो शिष्य मनोहर
उसके ज्ञान-ध्यान में कोई कमी न लाए
कहने कुछ मौका न देता
खूब गुरू का वो स्नेह पाए।।

कठोर साधना से मिलता सबकुछ
चाहे हड्डी-मांस भी क्षय जो जाए
लौह के जैसे भुज-दंड हो वीर के
वही जय-विजय-अभय का अधिकारी कहलाएं।।

पाहन सी बने मांस-पेशियां
अंतर्मन में उत्सुकता लाए
नस-नस में हो अनल भड़कता
तब जवानी जय पा जाए।।

पूजा-हवन और यज्ञाग्नि जलाते
अस्त्र-शस्त्र सन्धान उससे गुरु कराए
स्नेह की डोर में ऐसे बंधे राम
कर्ण पर खोल पिटारा सारा ज्ञान लुटाए।।

ज्ञान-विज्ञान संग अर्थशास्त्र का
ज्ञान सामाजिक-राजनीति का उसे बताए
कुछ शेष बचा न उनके पास में
गुरु परशु बड़े महान कहलाए।।

मंत्र-मुग्ध हो उसकी भक्ति भाव से
सहलाता कभी हाथ फेरता
कच्ची नींद उनकी टूट न जाए
सजग कर्ण चींटी, पत्तियाँ हटाए।।

विषकीट एक फिर आकर काटा
विकल हुआ पर अचल बैठा
धँसता जा रहा तन में धीरे
टूटेगी नींद इसलिए दर्द है सहता।।

बैठा रहा कर्ण मन को मारे
पीले जितना रक्त पियेगा
नींद न उनकी टूटने दूँगा
न सर पर इस पाप को लूँगा।।

जागे गुरु और विस्मित होते
रक्त की धारा अविचल बहते
सहनशीलता ब्राह्मण धर न सकेगा
यूं बहरूपियां मुझे कोई चलना सकेगा।।

क्षत्रिय की पहचान वेदना
ब्राह्मण वेदना सह न सकेगा
निश्छल कैसे विप्र रहेगा
तू क्रोधाग्नि मेरी आज सहेगा।।

विप्र के भेष में कौन बता तू
नही तो भस्म अभी-आज मिलेगा
थर-थर कांपे इत-उत तांके
निश्चित गुरु से मुझे श्राप मिलेगा।।

सूत-पुत्र मैं शुद्र कर्ण हूँ
सोचा आपसे कुछ ज्ञान मिलेगा
शिक्षा के हकदार ब्राह्मण
इसलिए मैंने ये भेष धरा था।।

विद्या संचय था मुख्य लक्ष्य
आपसे बढ़कर गुरु मुझे कौन मिलेगा
करुणा-दया का अभिलाषी हूँ
आप सर्वज्ञ आपको कौन छलेगा।।

आपका अनुचर अंतेवासी हूँ
जीवन सार यहाँ सूत्र मिलेगा
क्या कर सकता मैं समाज की खातिर
जग में क्या मुझे मान मिलेगा||

शंका-चिंता मुझको प्रभु
शुद्र को कब-कहाँ ज्ञान मिलेगा
भावना-विश्वास न मेरा खोटा
निश्चल-निर्मल मेरा हृदय मिलेगा।।

शूद्र की उन्नति कैसे मार्ग खुलेगा
शिक्षा का क्या-कभी अधिकार मिलेगा
छद्म भेष में मुझे आना पड़ा यहाँ
क्या उनके लिए कभी-कोई लड़ेगा||

मदांध अर्जुन को झुका न पाऊं
संसार मुझको छली कहेगा
भस्म कर दो मुझे आज-अभी आप
नही तो जग मेरा क्या-कभी कोई सम्मान करेगा।

तृष्णा विजय की जीने देती
अतृप्त वासना मैं हर न सकूंगा
हार मित्र की कैसे सहूं मैं
देख अभय-अजय अर्जुन को रोज मरूंगा।।

प्रतिभट जाना अर्जुन का तब
कणिकाएं अश्रु की बहने लगी थी
विश्व-विजय का कामी, तू कर्ण
कभी न सोचा क्यूं, तू इतना श्रम करेगा।।

अनगिनत शिष्य आए अब तक
तुझ जैसा न कभी-कोई शिष्य मिलेगा
द्रोण-भीष्म को सिखाया मैंने कितना
पर जिज्ञासु न कभी तेरे जैसा मिलेगा।।

पवित्रता से अपनी मुझको जीता
सोचा न तू भी छल करेगा
स्नेह तुमसे मेरा अनोखा
आज श्राप का तू मेरे भागी बनेगा।।

क्रोध को अपने कहाँ उतारूं
छल का तो तुम्हें फल मिलेगा
भूल जायेगा जो सीखा एक दिन
जीवन-निर्णायक युद्ध को जब तू लड़ेगा।।

चले जाओ अब यहाँ से कर्ण तुम
मन मेरा नही बदल जायेगा
गुण-शील तेरे मन में उगते
जा एकांत में छोड़ मुझे अभी चला जा, जा एकांत में छोड़ मुझे अभी चला जा।

मौलिक व अप्रकाशित रचना

Views: 156

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"देखकर ज़ुल्म कुछ हुआ तो नहीं हूँ मैं ज़िंदा भी मर गया तो नहीं ढूंढ लेता है रंज ओ ग़म के सबब दिल मेरा…"
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"सादर अभिवादन"
5 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"स्वागतम"
5 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service