सीख ......
"पापा ! फिर क्या हुआ" । सुशील ने रात को सोने से पहले पापा की टाँगें दबाते हुए पूछा ।
"कुछ मत पूछ बेटा । हर तरफ मार काट, भागम-भाग , हर तरफ चीखें ही चीखें थी । हमने थोड़े से गहने और सामान बाँधा और सब कुछ छोड़ कर निकल लिए ।" पापा ने कहा ।
"आप सुरक्षित कैसे निकले "। सुशील ने पूछा ।
"ह्म्म । बेटे!सन् 1947 के विभाजन में सम्भव नहीं था वहाँ से सुरक्षित निकलना । उसी कौम का एक इंसान फरिश्ता बन कर हमारी मदद को आया और किसी तरीके से बचते बचाते हिन्दुस्तान की ट्रेन में बिठाया और हम बचकर हिन्दुस्तान पहुंचे" । पापा ने कहा ।
"वो नेक इंसान कौन था पापा "।
"मेरा कार्यालय अधिकारी। वो मेरी काम के प्रति वफादारी, मेरा उसके प्रति समर्पित मधुर व्यवहार से बहुत प्रभावित था । बस उस अधिकारी के प्रति मेरे इस समर्पण भाव और ईमानदारी ने हमें उस हृदय विदारक स्थिति से निकाला" ।
"बेटे ! एक बात जिन्दगी में हमेशा याद रखना कि मजहबी भाव को अलग रखते हुए कार्य के प्रति ईमानदारी, समर्पण और मधुर व्यवहार कभी बेकार नहीं जाता और विषम परिस्थिति में इसके सकारात्मक परिणाम मिलते हैं । अच्छा चल रात बहुत हो गई है अब सो जा" । यह कहकर पापा करवट बदल कर सो गए ।
सुशील भी पापा की सीख को सोचते सोचते सोने
के लिए अपने कक्ष में चल दिया ।
सुशील सरना / 19-8-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
शीर्षक भी कुछ और.बेहतर दिया जा सकता है, ताकि पाठक की जिज्ञासा बढ़ाई जा सके। अथवा शीर्षक भी प्रतीकात्मक और संदेश वाहक हो रचना के प्रवाह संग।
आदरणीय सुशील सरना जी , कहानी अच्छी लगी , हार्दिक बधाई।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सुंदर संदेशपरक लघुकथा हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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