दोहा पंचक. . . . . तूफान
चार कदम पर जिंदगी, बैठी थी चुपचाप ।
बारिश के संहार पर,करती बहुत विलाप ।।
रौद्र रूप बरसात का, लील गया सुख - चैन ।
रोते- रोते दिन कटा, रोते -रोते रैन ।।
कच्चे पक्के झोंपड़े , बारिश गई समेट ।
जन - जीवन तूफान के, चढ़ा वेग की भेंट ।।
मंजर वो तूफान का, कैसे करूँ बयान ।
खौफ मौत का कर गया, आँखों को वीरान ।।
उड़ जाऐंगे होश जब, देखोगे तस्वीर ।
देख बाढ़ का दृश्य वो , गया कलेजा चीर ।
सुशील सरना / 2-8-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर दोहावली हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।
आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, बारिश की अति पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
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