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"हम बानी कुँवारी"

हम बानी कुँवारी
माँ-बाप के सर पर
एक बोझ बानी भारी
दुल्हा खरीद ना पईनी
हम बानी ऊ अभागन नारी

हम बानी कुँवारी
प्रदर्शनी खातिर लागल
हई कौनो चीज प्यारी
आवेलन लइका वाला
देखे खातिर हमके
पर ऊ त देखेलन,
हमार घर, हमारा बाप के हैसियत
कहेलन ऊ लोग,
दो चार रोज में बताएम
पर हमके पता बा
ऊ लोग नइखे आवे वाला
काहे कि, लइका वाला देखले बा
हमरा दुआरी पर
नाही खडा बा कार
हमरा ड्राईंग रूम मे
सोफा नईखे , अउर
कुर्सि पड़ल बा दो-चार
जब हम छोटी रहनी
तब सोचत रहनी
लोग काहे कहेला
लक्ष्मी ,बहू के
लेकिन,
अब समझ मे आ गइल बा
सचमुच बहु लक्ष्मी होले
और जेकरा घर मे लक्ष्मी ना होला
ऊ बहु ना बन सकेले
ऊ बहु ना बन सकेले।

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Comment by Rana Pratap Singh on September 6, 2010 at 9:46pm
बहुत सुन्दर कविता| एक नारी की विवाह पूर्व मनोदशा का सुन्दर वर्णन|
Comment by BIJAY PATHAK on April 14, 2010 at 1:33pm
Raju,
Tahar prativa (Kavita lekhan) ke hum kayal hai,
Bahut badhiya likhle bara, asahi likhat raha
Bijay Pathak
Comment by Rash Bihari Ravi on April 7, 2010 at 2:08pm
अब समझ मे आ गइल बा
सचमुच बहु लक्ष्मी होले
और जेकरा घर मे लक्ष्मी ना होला
ऊ बहु ना बन सकेले
bah ka bat ba
Comment by Admin on April 7, 2010 at 1:20pm
बेजोड़ कविता बा राउर, एकर जेतना भी तारीफ़ कइल जाव वोतने कम बा ,राउर कविता मे लिखल एक एक चीज आज समाज मे साफ़ दीख रहल बा, आ दहेज़ के दानव आपन बडका मुह बावले खाड बा, एकरा मे कोई एक आदमी दोषी नैखे बल्कि पूरा समाज ही दोषी बा ,लड़की के बाप के महत्वाकांछा भी बराबर के दोषी बा .

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 7, 2010 at 7:31am
हम बानी कुँवारी
प्रदर्शनी खातिर लागल
हई कौनो चीज प्यारी
आवेलन लइका वाला
देखे खातिर हमके
पर ऊ त देखेलन,
हमार घर, हमारा बाप के हैसियत
वाह राजू भाई वाह रौवा ता एतना हिरदयस्पर्शी कविता लिखले बानी जवना के कवनो जोड़ नईखे बहुत ही सुंदर और यथार्थ और भावार्थ से परिपूर्ण कविता, आज के चलन पर चोट करत कविता खातिर बहुत बहुत धन्यबाद, अब रौवा लेखनी मे परिपक़्वता सॉफ दिखत बा , लागल रही बहुत सही जात बानी रौवा I
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 6, 2010 at 9:19pm
bahut badhiay raju jee...........aap to ek par el tagda rachna likh rahe hain....
bahut acchha hai aise hi likhte rahiye.....

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