For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया

ग़ज़ल :- सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया

 

सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया ,

आदमी तकनीक के गुलशन का सहरा हो गया | 

 

जड़कटी संस्कृति ने दी रिश्तों को परिभाषा नयी ,

मीडिया के शोर में हर शख्स बहरा हो गया |

 

मैं कि मूल्यों का लिए परचम हूँ लाइन में खड़ा ,

अब ऋचाओं का भी पढना क्या ककहरा हो गया |

 

दिन में हंसिये फावड़े पर रंग सियासत का चढ़ा ,

गाँव का तालाब रातोरात गहरा हो गया |

 

मेरे कांधों पर उम्मीदों के कई ताबूत  हैं ,

और कब्रिस्तान पर लोगों का पहरा हो गया |

 

दौर में बिकने लगीं  इल्मों हुनर की डिग्रियां ,

कह रहे हैं वो कि मुस्तकबिल सुनहरा हो गया |

 

                 - अभिनव अरुण {270404}

 

Views: 474

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on August 23, 2011 at 1:45pm

shukriya virendra jee aapki tippani mera hausla badhayegee "

Comment by Veerendra Jain on August 22, 2011 at 11:41pm
मेरे कांधों पर उम्मीदों के कई ताबूत हैं ,
और कब्रिस्तान पर लोगों का पहरा हो गया

bahut hi achi gazal...Arun ji bahut bahut badhai aapko..
Comment by Abhinav Arun on August 21, 2011 at 4:00pm

bahut abhari hoon BAGI JI & SAURABH JI .apka sneh aur ashish milna jari rahe srijan ki syahi kuchh n kuchh rachti rahegi.thanks ! Thanks !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2011 at 2:16pm

हर अशार पर अलग-अलग दाद लें. किसे क्या कहें अब.

बहुत-बहुत बधाई, अरुणअभिनवजी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 21, 2011 at 12:43pm

वाह वाह वाह, अरुण जी प्रत्येक शे'र उच्च मूल्यों को समाहित किये हुए है, जबरदस्त कहन का मुजाहिरा कराया है आपने, कांधो पर उम्मीदों का ताबूत ...वाला शे'र बहुत ही उम्द्दा लगा, कुल मिलाकर एक खुबसूरत ग़ज़ल कही है आपने | बधाई आपको | 

Comment by Abhinav Arun on August 21, 2011 at 10:39am

सोच का सन्दर्भ अब कितना इकहरा हो गया ,

आदमी तकनीक के गुलशन का सहरा हो गया | 

इसे अब भी बदलने की सोच रहा हूँ | कुछ वर्ष पहले लिखी ग़ज़ल में ये मिसरा पहले यूं था -

दर्द और संवेदना का बोझ दोहरा हो गया ,

आदमी तकनीक के हाथो का मोहरा हो गया |

परन्तु आगे के शेरो का काफिया दोषपूर्ण हो जाता | सो बदल दिया है | परिमार्जन की प्रक्रिया चल  रही है निरंतर ...

Comment by Abhinav Arun on August 21, 2011 at 9:25am
शुक्रिया आशीष जी ये सब आप जैसे सुधी प्रशंसकों का स्नेह और उनकी शुभकामनाएं है | आभार !!
Comment by आशीष यादव on August 20, 2011 at 11:49pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी,
फिर से आप की एक शानदार ग़ज़ल आई हम लोगो के बीच|
आप को पढना बहुत अच्छा लगता| आपके भाव और समय का मेल बहुत सुन्दर है|
आपकी लेखनी को मेरा नमन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
16 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी सर बधाई स्वीकारें सुधार के बाद शेर और निखर गए हैं"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सुधार- उम्रें न सही लम्हे बिताने के लिए आ ग़र इश्क़ है तो साथ निभाने के लिए आ/१ दिल भूल गया है सभी…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मुश्किल में हूँ मैं मुझको बचाने के लिए आ है दोस्ती तो उसको निभाने के लिए आ 1 यही बात इन्हीं शब्दों…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अभी समय मॉंगती है। बहुत से शेर अच्छे शेर होते-होते रह गये हैं। मेरा दृष्टिकोण प्रस्तुत…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिए  गिरह शानदार…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए  मतला और गिरह ख़ूब…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service