For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना

बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना
तरक्की के सफ़र में थोडा सा माजी बचा लेना

बनाओ संगेमरमर के महल चारो तरफ पक्के
मगर आंगन के कोने में ज़रा माटी बचा लेना

चुभी थी फांस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी
न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना

कोई भूखा तुम्हारे दर से देखो लौट ना जाये
तुम अपने खाने में से रोज़ दो रोटी बचा लेना

लगा पाओ वतन पर मरने वालो का कोई बुत भी
कोई नुक्कड़ तुम अपने बुत से भी खाली बचा लेना

(बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम, अरकान मफाईलुन एक मिसरे में चार बार)

Views: 381

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 15, 2010 at 6:24pm
बड़ी मेहनत से जो पाई वो आज़ादी बचा लेना
तरक्की के सफ़र में थोडा सा माजी बचा लेना
इस माज़ी को बचाना जब दकियानूसी समझा जाने लगे तो कवि की यह गुहार उसके आंतरिक ताकत और मानसिक गठन को बताती है.
किस-किस की चर्चा करूँ? माटी बचाने का संदर्भ हो या रोटी बचाने का सामाजिक-दायित्व निखर कर आया है. और तो और बुतों और पुतलों की बात कितनी सहजता से कही गई लगती है. मगर समझ बताती है कि अब कमजर्फ़ी की इंतहा क्या-क्या दिखा रही है. राणाप्रतापजी बहुत अच्छे. बहुत खूब.
Comment by sanjiv verma 'salil' on August 15, 2010 at 11:51am
शानदार और जानदार रचना के लिये बधाई. आपने बहर, काफिया और रदीफ़ के साथ न्याय किया है.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 15, 2010 at 11:41am
बनाओ संगेमरमर के महल चारो तरफ पक्के
मगर आंगन के कोने में ज़रा माटी बचा लेना,
राणा भाई,बहुत खूब , सर्वप्रथम तो मैं भी आपको स्वतंत्रता दिवस की बधाई देना चाहता हूँ तत्पश्चात स्वतंत्रता दिवस पर लिखी इस खुबसूरत और बेहतरीन ग़ज़ल पर भी बधाई स्वीकार करे, बहुत ही उम्द्दा और सुंदर शब्दों से सुसज्जित शानदार रचना, बहुत बहुत धन्यवाद इस रचना पर,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on August 14, 2010 at 8:12pm
bahut hi badhiay rachna rana bhai....ye rachna sach puchiye to ekdam se dil ko chu gayi...
waah bhai waah behtareen rachna......aapne ek sachhe desh bhakt hone ka saboot diya hai is rachna ke madhyam se....
bijayi bishwa tiranga pyara,
jhanda ucha rahe hamara......

jai hind.....jai obo
Comment by आशीष यादव on August 14, 2010 at 6:27pm
आपको मेरा सादर प्रणाम,
आपकी ये रचना छू गयी मेरे ह्रदय को| किसी को भी उसकी आजादी बहुत अच्छी लगती है| अगर आप अपनी अच्छी शय को बचा के नहीं रखेंगे तो ये दुनिया वाले बहुत जल्दी छीन लेंगे|
हर वक़्त देश से प्यार करना चाहिए, अपनी मिटटी से प्यार करना चाहिए. एक कवि ने कहा भी है.
जो भरा नहीं है भांवों से, जिसमें बहती रसधार नहीं|
वह ह्रदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं||

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"//वेदना तुम से विरह की एक पल भूले नहींकिन्तु नव सम्बन्ध हम स्वीकार भी करते रहे// हासिल-ए-ग़ज़ल शेर !…"
14 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"ग़़ज़ल पर संभावित प्रश्नों को विचार में लेते हुए मेरे विचार प्रस्तुत हैं।  खुद ही अपनी…"
38 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. अजय जी आपकी आपत्ति का संज्ञान ले लिया गया है. सभी देवताओं को किसी ने व्यभिचारी नहीं कहा…"
41 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"वाह! ख़ूब ! ख़ूब! बहुत ख़ूब! शानदार ग़ज़ल कही आपने आदरणीय शिज्जू शकूर साहब। गिरह सहित सभी शेर असरदार…"
42 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. दयाराम जी,बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ..इस्लाह जैसा कुछ भी नहीं है किन्तु दो चार बारीक बातें प्रस्तुत…"
48 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. अजय जी.मलते में नेता मिल के भ्रष्टाचार करते हैं लेकिन असल में ऐसा होता नहीं. वो अपनी अपनी बारी…"
54 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  गुणीजनों…"
56 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"निडर होने का मतलब वृहत समुदाय की भावनाओं को आहत करना तो नहीं ही हो सकता है। आप के इस शेर से मुझे…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, एक अच्छी ग़ज़ल से मुशायरे को शुरुआत दी आपने। लगभग सभी शेर अच्छी कहन में हैं,…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"धन्यवाद आ. अजय जी व्यभिचार भी यह कहीं प्रतीत नहीं होता की हमेशा करते रहे ..लेकिन व्यभिचार…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आभार आ. तिलकराज सर "
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है ऋचा जी। आदरणीय शिजजु जी और नीलेश भाई ने जो बिन्दु दिए हैं वो…"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service