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फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फाइलुन
२२ २२ २२ २२ २१२
बहरे मुतदारिक कि मुजाहिफ सूरत
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जब से वो मेरी दीवानी हो गई
पूरी अपनी राम कहानी हो गई
काटों ने फूलों से कर लीं यारियां
गुलचीं को थोड़ी आसानी हो गई
थोड़ा थोड़ा देकर इस दिल को सुकूं
याद पुरानी आँख का पानी हो गई
सारे बादल…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on July 6, 2015 at 7:00pm — 28 Comments
Added by Rana Pratap Singh on July 27, 2014 at 1:30pm — 1 Comment
जिन्होंने रास्तों पर खुद कभी चलकर नहीं देखा
वही कहते हैं हमने मील का पत्थर नहीं देखा
.
मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा
.
उन्हें गर्मी का अब होने लगवा अहसास शायद कुछ
कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा
.
सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन
बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा
.
फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो
अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं…
Added by Rana Pratap Singh on June 5, 2014 at 10:26am — 19 Comments
नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव
आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव
धधक रही भठ्ठी में
महुवा महक रहा है
धनिया की हंसुली पर
सुनरा लहक रहा है
कारतूस की गंध
अभी तक नथुनों में है
रोजगार गारंटी अब तक
सपनों में है
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती
या, फिर हो डुमरांव
कब तक पानी पर तैरायें
काग़ज़ वाली नांव !
माहू से सरसों, गेहूं को
चलो बचाएं जी
नील गाय अरहर की बाली
क्यों…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 28, 2013 at 2:30pm — 40 Comments
फाइलातुन फइलातुन फइलुन/फैलुन
मुझ पे इलज़ाम अगर लगता है
आपके ज़ेरेअसर लगता है
तुझमे खूबी न जिसे आये नज़र
वो बड़ा तंगनज़र लगता है
इक दिया हमने जलाया था कभी
अब वही शम्सो क़मर लगता है
ढूंढ आये हैं ख़ुशी हम घर घर
ये हमें आखिरी घर लगता है
यूँ तो है बात बड़ी छोटी पर
बात करते हुए डर लगता है
एक तेरे ही नहीं होने से
ये ज़हां ज़ेरोज़बर लगता…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 26, 2013 at 11:39am — 28 Comments
उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है
ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है
जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है
मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है
मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'
देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है
कुछ तो…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on November 6, 2013 at 11:26pm — 41 Comments
फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए
रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए
प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए
मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो…
Added by Rana Pratap Singh on August 1, 2013 at 9:23pm — 36 Comments
जो हमें बरसों से हरदम चीट ही करते रहे
मसअले दर मसअले वो ट्वीट ही करते रहे
खर्च करने के लिए इमदाद में आई रकम
पंचतारा होटलों में मीट ही करते रहे
जो हमें समझा किये कीड़े मकोडों की तरह
हम खुदा की तरह उनको…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 2, 2012 at 8:50am — 9 Comments
कुहनी तक देखो कुम्हार के
फिर से हाथ सने
फिर से चढ़ी चाक पर मिट्टी
फिर से दीप बने
बंद हो गई सिसकी जो
आँगन में रहती थी
परती पड़ी जमीन…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on November 13, 2012 at 11:24am — 6 Comments
सुल्तान जो अपना है वो उनका मुसाहिब है
आये हैं जिधर से वो कहते वहीँ मगरिब है
खामोश ही रहता है अब तक वो नहीं समझा
दुनिया नहीं चुप्पी की दो लफ्जों की तालिब है
हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?…
Added by Rana Pratap Singh on October 23, 2012 at 3:00pm — 8 Comments
भूख की चौखट पे आकर कुछ निवाले रह गए
फिर से अंधियारे की ज़द में कुछ उजाले रह गए
आपकी ताक़त का अंदाजा इसी से लग गया
इस दफे भी आप ही कुर्सी संभाले रह गए
लाख कोशिश की मगर फिर भी छुपा ना पाए तुम
चंद घेरे आँख के नीचे जो काले रह गए
जब से मंजिल पाई है होता नहीं है दर्द भी
देते हैं आनंद जो पाओं में छाले रह गए
जम गए आंसू, चुका आक्रोश, सिसकी दब गई
इस पुराने घर में बस…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on November 27, 2011 at 11:30pm — 16 Comments
नवगीत
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Added by Rana Pratap Singh on April 13, 2011 at 10:00am — 13 Comments
ओ. बी. ओ. परिवार के सम्मानित सदस्यों को सहर्ष सूचित किया जाता है की इस ब्लॉग के जरिये बह्र को सीखने समझने का नव प्रयास किया जा रहा है| इस ब्लॉग के अंतर्गत सप्ताह के प्रत्येक रविवार को प्रातःएक गीत के बोल अथवा गज़ल दी जायेगी, उपलब्ध हुआ तो वीडियो भी लगाया जायेगा, आपको उस गीत अथवा गज़ल की बह्र को पहचानना है और कमेन्ट करना है अगर हो सके तो और जानकारी भी देनी है, यदि उसी बहर पर कोई दूसरा गीत/ग़ज़ल मिले तो वह भी बता सकते है। पाठक एक दुसरे के कमेन्ट से प्रभावित न हो सकें…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on February 27, 2011 at 10:30am — 1 Comment
Added by Rana Pratap Singh on January 29, 2011 at 5:00pm — 8 Comments
Added by Rana Pratap Singh on August 14, 2010 at 10:00am — 5 Comments
Added by Rana Pratap Singh on August 8, 2010 at 11:00pm — 3 Comments
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