For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुल्तान जो अपना है वो उनका मुसाहिब है
आये हैं जिधर से वो कहते वहीँ मगरिब है

खामोश ही रहता है अब तक वो नहीं समझा
दुनिया नहीं चुप्पी की दो लफ्जों की तालिब है

हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?
इक उम्र हमारी क्या बस नींद मे वाजिब है?

सुनते है कि उस खत का मज़मून भी ना बदला
कल उनसे मुखातिब था अब तुमसे मुखातिब है

कुछ और मछलियां भी बाहर तो निकल आयें
सैलाब के आने मे कुछ देर मुनासिब है

कोशिश तो बहुत की पर बदला न हवा का रुख
कल भी उसी जानिब था अब भी उसी जानिब है

शब्दार्थ 

मुसाहिब- किसी बड़े आदमी के पास बैठने वाला ,

मगरिब- सूर्य डूबने का स्थान, पश्चिम

तालिब- इच्छुक, ख्वाहिशमंद

मज़मून-विषय

 

 

Views: 499

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लतीफ़ ख़ान on October 25, 2012 at 10:29am

इस क़ाफ़िये को लेकर बहुत कम ग़ज़ल कही गई है. इस पर आपकी कोशिश क़ाबिले-तारीफ़ है. शेर बहुत अच्छे बन पड़े है.

दाद क़ुबूल कीजिये भाई राणा प्रताप सिंह जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 10:25am

सुनते है कि उस खत का मज़मून भी ना बदला
कल उनसे मुखातिब था अब तुमसे मुखातिब है---क्या बात है राणा जी हर शेर अपने में इक कहानी समेटे हुए भाव समझने के लिए बार बार पढ़े बहुत उम्दा ग़ज़ल लिखी है आपने


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 12:00pm

राणा भाई, कई कई दफा पढ़ी यह ग़ज़ल, हर बार नई लगी, जब कोई ग़ज़ल धीमी आंच पर कई कई दिन तक पकति है तो वो कैसे निखरती है, इसका उदाहरण आपकी ग़ज़ल में है, कहन और शिल्प वाह वाह, इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर बधाई और विजयादशमी के पावन पर्व पर ढ़ेर सारी शुभकामनायें स्वीकार हो |

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 24, 2012 at 10:57am

हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?
इक उम्र हमारी क्या बस नींद मे वाजिब है?

वाह! ख़ूबसूरत अश'आर, शानदार ग़ज़ल! बधाई भाई साहब!

 

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 23, 2012 at 10:57pm

//कोशिश तो बहुत की पर बदला न हवा का रुख
कल भी उसी जानिब था अब भी उसी जानिब है//

भाई राणा जी ! इस शानदार व अर्थपूर्ण ग़ज़ल के लिए कोटि-कोटि बधाई स्वीकारें !  

Comment by वीनस केसरी on October 23, 2012 at 9:58pm

भाई राणा जी
बहुत दिन बाद आये और आते ही ऐसी ग़ज़ल कही की पढ़ कर दिल डबल स्पीड से पम्पिंग करने लगे  :)))
भाई इशारों इशारों में आप बहुत कुछ कह गये 
आपको कमल का फूल भेंट करने की इच्छा हो रही है :)))

Comment by Abhinav Arun on October 23, 2012 at 7:44pm

वाह श्री राणा जी .. उस्तादों वाली तासीर लिए हुए एक एक शेर बाकमाल है बधाई !! ये दो शेर बहुत भा गए हैं -

सुनते है कि उस खत का मज़मून भी ना बदला
कल उनसे मुखातिब था अब तुमसे मुखातिब है

कुछ और मछलियां भी बाहर तो निकल आयें
सैलाब के आने मे कुछ देर मुनासिब है

वाह वाह दिल इन्हें अभी बार बार पढ़ और दुहरा रहा है !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 23, 2012 at 6:33pm

राणाभाई, क्या खूबसूरत ग़ज़ल साझा की है आपने ! वाह. और बह्र भी क्या रखा ! खूबसूरत ! देर आयद दुरुस्त आयद.. .

मतले से ही ग़ज़ल एकदम से बाँध लेती है. समसामयिक परिस्थितियों पर बहुत कुछ इशारे करती आपकी ग़ज़ल हर तरह से दाद के काबिल है. निम्नलिखित अश’आर तो एकदम से छू जाते हैं -

सुनते है कि उस खत का मज़मून भी ना बदला
कल उनसे मुखातिब था अब तुमसे मुखातिब है

कुछ और मछलियां भी बाहर तो निकल आयें
सैलाब के आने मे कुछ देर मुनासिब है

कोशिश तो बहुत कीं पर बदला न हवा का रुख
कल भी उसी जानिब था अब भी उसी जानिब है 


लेकिन जिस शेर ने देर तक बाँधे रखा वो है -

हम देर से जागे तो ये कोई खता है क्या?
इक उम्र हमारी क्या बस नींद मे वाजिब है?  .. . वाह-वाह !

एक उम्दा ग़ज़ल के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद और हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
9 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
yesterday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service