मुर्गे की बांग के साथ ही
प्रवेश किया मैंनें तुम्हारी नगरी में .
रुपहरी भोर ,सुनहरी प्रभात से ,
गले लग रही थी
लताओं से बने तोरणद्वार को पारकर आगे बढ़ी,
कलियाँ चटक रही थीं,
फूलों का लिबास पहने,
रास्ते के दोनों और खड़े पेड़ों ने
अपनी टहनियां झुकाकर स्वागत किया मेरा
भीनी- भीनी
मनमोहक मादक खुशबू बिखेर,
आमंत्रित किया मुझे,
तुम्हारी नगरी में |
अदभूत नज़ारा था,
ठंडी-ठंडी पुरवाई,
फूलों पर मंडराते भ्रमर गुंजन करते,
सुंदर पंखों वाली तितलियाँ और
उनकी आकर्षक आकृतियाँ
मन को लुभाने लगीं ,
तुम्हारी नगरी में |
पक्षियों का संगान
लगा तुम्हारी सृष्टि का बखान
प्राची में उगते बाल सूर्य की लालिमा से
खूबसूरत बना क्षितिज,
पानी में उतरता उसका अक्स,
यौवन की और बढता वह,
तुम्हारी शक्ति,तुम्हारे बल की कहानी कहता लगता,
आत्मबल का पर्याय बना ,
धरती को धन्य करता.
जंगल की डगर ...
फूलों से लदी डालियाँ
अंगड़ाई लेती वादियाँ
कुलांचें भरते वन्य जीव
कल -कल बहता पानी
झर-झर झरता झरना
तुम्हारी अजस्त्र ऊर्जा का बहाव,
तुम्हारा ये चमत्कार,
विश्व को तुम्हारा उपहार
तुम्हारी ही नगरी में |
नदी के किनारे खड़े
आकाश को छूते पेड़ों के झुंडों को देखकर लगा
जेसे दे रहे हों सलामी खड़े होकर
तुम्हारी अद्वितीय कारीगरी को
छू रहे थे आसमान,
धरती से जुड़े होने पर भी,
ऊँचाइयों को छूकर लग रहे थे खिले-खिले
तुम्हारी नगरी में |
आगे पर्वतों की चोटियाँ दिखीं
उत्तुंग शिखरों पर कहीं बर्फ की चादर बिछी थी ,
कहीं उतर रहे थे बादल,
अपनी गति .अपने विहार को विश्राम देते
अपनी शक्तियों को पुनः जगाने के लिए,
बूँद-बूँद बन सागर की और जाने के लिए,
ताकि कर सकें विलीन अपना अस्तित्व,
वामन से बन जाएँ विराट .
तुम्हारी ही नगरी में |
खेतों में उगी धान की बालियाँ
कोमल-कोमल ,कच्ची-कच्ची
हवा से हिलतीं
तुम्हारे मृदु स्पर्श को महसूस करतीं ,लजातीं सी
नव जीवन पातीं लग रही थी
तुम्हारी ही नगरी में |
शांत-प्रशांत झीलों में खिलते कमल,
उनमें विहार करते ,चुहुल बाजी करते ,
कभी इतराकर चलते
नहाकर पंख फडफडाते
थकान मिटाते पक्षी,
करा रहे थे सुखद अनुभूति जीवन की ,
तुम्हारी ही नगरी में |
कहीं-कहीं पेड़ों की शाखाओं पर
रुई के फाहे सी उतरती बर्फ का साम्राज्य था,
ठिठुरती रात, गहराता सन्नाटा
अलग ही रूप दिखा रहा था,तुम्हारी सृष्टि का,
तुम्हारी ही नगरी में |
सभी रूपों में नगरी लग रही थी भली,
सहज शांत
कहीं प्रकाश अंधकार बना
तो कहीं अंधकार प्रकाश बनता दिखा
जब अस्त होकर सूरज उदय हुआ.
कहीं जीवन मृत्यु को समर्पित हुआ
तो कहीं मृत्यु से जीवन का प्रस्फुटन दिखा
जब धरती में पड़े बीज ने अंकुर को जन्म दिया |
उतार -चढ़ाव की कहानी कहती
जीवन -मृत्यु की कला सिखाती
तुम्हारी नगरी कितनी सुंदर|
नदी-नाव ,झील-प्रपात ,
सागर-लहरें ,पर्वत-पक्षी,
सूरज-चाँद ,बादल-आवारा
कलि-फूल ,वन-प्रांतर सारे,
बने खिड़कियाँ तूम्हारे दर्शन के |
में खो गई नगरी की सुन्दरता में,
भूल गई मंजिल ,
खूबसूरत रास्तों में उलझ गई
छल लिया इन्होनें मुझे ,
बांध लिया अपने बाहुपाश में ,
अपने प्यार से अपनी कोमलता से |
तुम्हारी पवित्रता
तुम्हारी उच्चता
तुम्हारी अतुल्यता की, कहानी कहती, ये नगरी कितनी भव्य है ?
जब तुम स्वयं मिलोगे सृष्टा ,
क्या में आँखें चार कर पाउगी ?
तुम्हारी पवित्रता को छूने की पात्रता अर्जित कर पाऊँगी ?
Comment
जब तुम स्वयं मिलोगे सृष्टा ,
क्या में आँखें चार कर पाउगी ?
तुम्हारी पवित्रता को छूने की पात्रता अर्जित कर पाऊँगी ?
...शब्दों और भावों का प्रवाह अपने साथ बहा ले जाता है. प्रकृति का बहुत सुन्दर शब्द चित्र. आभार
वाह बहुत सुन्दर। पढ़ते-पढ़ते मै तो बहने लगी। बहुत सुन्दर अच्छा लगा आपको पढ़ना।
सादर
सुन्दर अभिव्यक्ति .. .
तुम्हारी पवित्रता
तुम्हारी उच्चता
तुम्हारी अतुल्यता की, कहानी कहती, ये नगरी कितनी भव्य है ?
जब तुम स्वयं मिलोगे सृष्टा ,
क्या में आँखें चार कर पाउगी ?
तुम्हारी पवित्रता को छूने की पात्रता अर्जित कर पाऊँगी ?
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वाह, परम पिता परमेश्वर की नगरी, प्रकृति का विशालतम साम्राज्य, खुबसूरत कल्पना लोक की सैर, बहुत ही खुबसूरत रचना | बधाई स्वीकार करे |
मोहिनी जी,
आपकी इस रचना ने तो दिल मोह लिया....मैं तो इसे पढ़ते हुये कुदरत के नजारों में ही खो गयी...सब इस सृष्टि के रचनाकार का उपकार है हमपर. और कुदरत के इस भव्य रूप को अपने सुंदर शब्दों में बांधने के लिये आपका बहुत धन्यबाद :)
आप सभी का धन्यवाद .प्रकृति से हमें प्रेरणा मिलती है |
प्रकृति के मनुज से संबंधों के बहाने सुन्दर और सशक्त चित्रण ... इस मधुर मनोरम काव्य रचना के लिए आदरणीय मोहिनी ji को हार्दिक बधाई !!
bahut hi sundar chitran.
प्राची में उगते बाल सूर्य की लालिमा से
खूबसूरत बना क्षितिज,
पानी में उतरता उसका अक्स,
यौवन की और बढता वह, ..............
सुन्दर चित्रण ............. बधाई आपको
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