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चल रही हो संग हरदम विडंबना बन सहचरी तो क्यों न देखें ज़िन्दग़ी को एक नया आयाम दे कर ।
स्वप्न बन कर रह गई हो नव उषा की लालिमा जो क्यों न अपने रक्त ही से देख लें अंजाम दे कर ॥

देख कर हँसता रहा है द्वेष औ’ गुमान से
इस जमाने की कहें क्या बाँधता व्यवधान से
बढ़ते कदम का हर फिसलना हो अगर संज्ञान से
दृष्टि हँसती तोड़ती-सी कह उठेगी देख कर फिर - थे सधे कितने कदम वो बढ़ते रहे मुकाम दे कर ॥

खेत की हरियालियों में बारुदों के बीज क्यों
शांति खातिर हैं जगह जो बौखलाती खीज क्यों
उन्नत जहाँ की संस्कृति हो संतति नाचीज़ क्यों
खोखली परिपाटियाँ हैं, दोगली है सभ्यता ये.. आओ करें हर बात अपनी एक नया उन्वान दे कर ॥

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Comment by sanjiv verma 'salil' on August 17, 2010 at 7:51pm
मुझको यह रचना रुची.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 16, 2010 at 9:30am
खेत की हरियालियों में बारुदों के बीज क्यों
शांति खातिर हैं जगह जो बौखलाती खीज क्यों
उन्नत जहाँ की संस्कृति हो संतति नाचीज़ क्यों
खोखली परिपाटियाँ हैं, दोगली है सभ्यता ये.

बहुत खूब, सौरभ भाई साहब,

बातो बातो और इशारों मे कह गये हर बात आप,
क्या है भावना उनके मन की साफ़ कर गये है आप,

बहुत ही ससक्त और उम्द्दा रचना, बधाई इस खुबसूरत रचना पर,

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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