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सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है - ग़ज़ल : वीनस केशरी

एक नई ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है, मुलाहिजा फरमाए

 


सिहर जाता हूँ, ऐसा बोलता है
वो बस मीठा ही मीठा बोलता है

समय के सुर में बोलेगा वो इक दिन 
अभी तो उसका लहज़ा बोलता है

ये उसकी तिश्नगी * है या तिज़ारत**
वो मुझ जैसे को दरिया बोलता है

उसे खुद ही नहीं मालूम होता
नशे में मुझसे क्या क्या बोलता है

वो  सब कुछ जानता है और फिर भी
अँधेरे को उजाला बोलता है

पुरानी बात है, सब जानते हैं
 नया मुर्गा  ही ज्यादा बोलता है

मेरी माँ आजकल खुश हैं इसी मे
अदब वालों में बेटा बोलता है
-------------------------------------------
*     तिश्नगी   = प्यास
** तिज़ारत = व्यापार

बह्र ए हजज मुसद्दस मह्जूफ़

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Comment

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Comment by दुष्यंत सेवक on September 24, 2011 at 1:15pm

are shaandaaar....wahh waah waah venus bhai....ap to gazal ki duniya ke Jupiter ho ...kya kamaal ke ashaar hain....ek ek lafz jaise sanche me gadha hua hai ...apni jagah par bilkul sateek aur arthpoorn....maza aa gaya ek bar aur padh leta hoon 

 

Comment by Rajendra Swarnkar on September 24, 2011 at 12:18pm

वीनस भाई  

बहुत ख़ूब ! 

 

ये उसकी तिश्नगी  है या तिज़ारत
वो मुझ जैसे को दरिया बोलता है  
बहुत बड़ा शे'र है… मुबारकबाद !

मेरी माँ आजकल खुश हैं इसी मे
अदब वालों में बेटा बोलता है
बड़ा मा'सूम शे'र … व्वाऽऽह ! 
ग़ज़ल शानदार है …बधाई !

Comment by Tilak Raj Kapoor on September 24, 2011 at 11:27am
ग़ज़ल उम्‍दा है लेकिन ये तीन शेर जिस चट्टान पर खड़े हैं उसने लायन किंग की याद दिला दी।
ये उसकी तिश्नगी * है या तिज़ारत**
वो मुझ जैसे को दरिया बोलता है
 
वो  सब कुछ जानता है और फिर भी
अँधेरे को उजाला बोलता है
 
मेरी माँ आजकल खुश हैं इसी मे
अदब वालों में बेटा बोलता है

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 24, 2011 at 8:25am

//समय के सुर में बोलेगा वो इक दिन 
अभी तो उसका लहज़ा बोलता है//

बहुत खूब वीनस भाई, क्या बाकमाल आशार कहे हैं - मुबारकबाद ! 

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