(1)
बड़े प्यार से जो दुलरावै|
हमको अपने गले लगावै|
प्रीति-रीति में हम हों बंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!
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(2)
अलंकार से सज्जित सोहै|
रस की वृष्टि सदा मन मोहै |
मिल जाता है परमानन्द |
क्यों सखि साजन? नहिं सखि छंद |
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(3)
परम संतुलित जिसका भार|
गुरु लघु रूप बना आधार!
जन-जन को है जिसने मोहा|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि दोहा!
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(4)
मेल जोल जिसका है गहना|
जैसे लिखना वैसे पढ़ना|
पूरी होती जिससे आशा
क्यों सखि साजन? नहिं निज भाषा!
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(5)
दुनिया में जो प्रेम बढ़ावै|
जिसका साथ जिया हर्षावै|
राजनीति जिस पर हो गंदी|
क्यों सखि साजन? नहिं सखि हिंदी!
--अम्बरीष श्रीवास्तव
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Comment
स्वागत है आदरणीय धर्मेन्द्र जी ! अत्यंत आत्मीयता से मुकरियों की ऐसी सबल सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार मित्र ! आपके इस स्नेह के आगे नत मस्तक हूँ ! :-)))))))
आदरणीय सौरभ जी आपके इस स्नेह के आगे नत मस्तक हूँ !
स्वागत है आदरणीय भाई योगी जी !
क्षमा करें ! इन्टरनेट कनेक्शन में खराबी के कारण प्रतिक्रिया अत्यधिक विलम्ब से दे पा रहा हूँ ! यह सभी मुकरियां आपकी व आदरणीय सौरभ जी के प्रेरणा से ही रच पाया हूँ आप जैसे विद्वान को यह सभी मुकरियां पसंद आयीं तो अपना सम्पूर्ण श्रम सार्थक हो गया! इस आत्मीय सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार मित्र ! :-)))))))))
स्वागत है भाई राकेश जी ! आपका बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त ! :-)
स्वागत है आदरणीय वीनस भाई !
मुकरियों की तारीफ करने के लिए आपका तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया दोस्त ! :-))
स्वागत है आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी !
अधिक क्या कहूं मित्रवर ! आप की इस सराहना ने इस अकिंचन में एक नयी जान सी फूंक दी है! कृपया इस हेतु हार्दिक धन्यवाद स्वीकारें ! :-))))
स्वागत है भाई आशीष यादव जी ! मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार मित्र !
अम्बरीष जी, आपने आधुनिक कहमुकरियों को जो स्तर प्रदान किया है वह एक मापदंड है आने वाली कहमुकरियों के लिए, बधाई
मेरे प्रवास-काल के नैरन्तर्य में यदि किसी छाँह ने राहत उपलब्ध करायी है तो अवश्य ही वह ओबीओ और इसकी रचनाओं की छाँह हैं.
आदरणीय योगराजभाईसाहब, इसमें कोई संदेह नहीं कि आदरणीय अम्बरीषभाई का प्रयास और शिल्पकारी हम सभी के लिये गर्व का विषय है. कहना न होगा, इन सभी रचनाओं पर मात्र ’वाह-वाह’, ’बहुत खूब’ या ’लाजवाब’ जैसी प्रतिक्रियाएँ इन रचनाओं के स्तर से मेल नहीं खा सकतीं.
प्रिय भाई अम्बरीष जी, इस विधा पर मेरे समेत लगभग आधा दर्जन लोग हाथ आजमा चुके हैं ! लेकिन जिस उच्च स्तर को आपने छुआ है, वो शायद हरेक के बूते की बात नहीं ! आज दोपहर को आदरणीय सौरभ पांडेय जी का कोल्हापुर महाराष्ट्र से फोन आया था तब मैंने उन्हें आपकी मुकरियाँ अविलम्ब पढने का आग्रह करते हुए कहा था कि ये रचनाएँ हाल ही में इस विधा में कही गई रचनाओं में सर्वोत्तम हैं! अम्बरीष भाई जी, किसी विधा में लिखना एक बात बात है, मगर उसको आत्मसात कर शाहकार रच देना दीगर ! आपने जो कहमुकरियाँ कही हैं - लाजवाब हैं, उसके लिए आपको और आपकी लेखनी को दंडवत प्रणाम !
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