मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है
जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?
इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से ||1||
अब नीतियाँ चाहे कहें जो, सच मगर है एक ही
जब तक न हो मन स्वच्छ-निर्मल, दिग्भ्रमित है मन वही
रंगीन जल है ’क्लेष’ मन का, ’काम’ भी जल पात्र का
जिससे सधे उद्विग्न मन वह ’संतुलन’ का ज्ञान है
भटकाव के प्रारूप दो ही, क्लिष्ट और अक्लिष्ट हैं
छूटे न यदि भटकन सहज ही, मानिये वे क्लिष्ट हैं
उन्नत तपस से शुद्ध हो मन, भक्ति है, उद्धार है
भव-मुक्ति है, आनन्द है, शुभ प्रेम का संसार है ||5||
*****************************
-- सौरभ
(ध्यातव्य : छंद की पंक्तियों के प्रयुक्त सभी कोमा वाक्यानुसार है नकि यति के लिहाज से. किन्तु, वाचन-क्रम में पंक्तियों में यति का आभास स्वयमेव हो जायेगा.)
Comment
आदरणीया मिहिनीजी, आपका सादर धन्यवाद कि आपने मेरे प्रयास को अनुमोदित किया.
क्या , कौन और कैसा लक्ष्य हो इस जीवन का ?
राह दिखाती , इस जीवन की आपाधापी में विश्राम के अमूल्य पलों कि महत्ता बताती रचना .. जो आत्मावलोकन को प्रेरित करती है ..
आदरणीय श्री सौरभ जी लेखनी का हार्दिक नमन !!
प्रति पल परीक्षित आदमी है ........प्रत्येक क्षण कसौटी है जिंदगी की |बहुत अच्छा |
भाई बाग़ीजी, आपको मेरा प्रयास सार्थक लगा इस हेतु आपका आभारी हूँ.
छंद हरिगीतिका को लय के साथ पढ़ने में एक अलग ही अनुभव है, मैंने महसूस किया है कि जब मन अशांत हो तो गुनगुनाते हुए हरिगीतिका को पढ़िए, १००% लाभ ना मिला तो कहियेगा |
सौरभ भईया आपकी लेखनी को नमन, बहुत ही खुबसूरत हरिगीतिका की प्रस्तुति है, सरल प्रवाह, कथ्य उम्दा.. बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |
ओ बी ओ पर छंद परिचय हेतु एक समूह बनाया गया है जिसे धीरे धीरे भारतीय छंद विधान के साथ समृद्ध किया जायेगा, भाई अम्बरीश जी ने पहला पोस्ट "दोहा" पर लगाया है |
यह सही है भाई धर्मेंद्रजी, कि, छंद ’हरिगीतिका’ अपने आप में वैशिष्ट्य स्थान रखती है. इस छंद को मैं भाई अम्बरीषजी के सौजन्य से समझ पाया हूँ, जब मैंने उनके हाल में इसी छंद पर रचित रचना-समुच्चय पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी. मेरी समझ पर मेरे अनुज भाई नवीनजी ने सोत्साह प्रत्यंचा कसी है. आपसभी सुधी मित्रों का सहयोग, प्रोत्साहन तथा अनुमोदन मेरी साहित्य-यात्रा में मार्ग-दर्शी शलाका बने.
कहना न होगा, भाईजी, हुए छंद प्रयास और इस कथ्य पर आपका अनुमोदन मेरे लिये सनद सदृश है. आभार.
हरिगीतिका छंद को साधना कठिन है क्योंकि यह है तो मात्रिक छंद परंतु लगभग वार्णिक सा हो जाता है, अपने विशिष्ट प्रवाह के कारण। आपने बखूबी निभाया है छंद भी, भाव भी। बधाई स्वीकार करें।
भाई बृजभूषणजी, मेरी रचना की सार्थकता को आपने अनुमोदित किया है यह मेरे लिये अत्यंत संतोष की बात है. आप संभवतः नहीं मानेंगे, प्रस्तुत रचना पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी ने मुझे आंतरिक प्रसन्नता से आप्लावित कर दिया है. आपसे इसीतरह की टिप्पणियों की मुझे अपेक्षा रहती है.. संयत, शुद्ध और सटीक. आपका हार्दिक धन्यवाद.
आपको शायद याद हो बृजभूषणजी, इसी विषय के इर्द-गिर्द हमने आपस में टेलीफोन पर तेरह सितम्बर की शाम में चर्चा की थी. उसी चर्चा को इस रचना में आगे बढ़ता हुआ देखें -
उन्नत तपस से शुद्ध हो मन, भक्ति है, उद्धार है
भव-मुक्ति है, आनन्द है, शुभ प्रेम का संसार है ।.. .
धन्यवाद.
आदरणीय सौरभ सर जी आपकी इस सुन्दर रचना को पढकर न सिर्फ मन को एक असीम आनद की प्राप्ति होती है बल्कि हम इसके भावों को अपने मन और अन्तस्थ में उतार कर अपनी जिंदगी को स्वच्छ, सार्थक और सफल बना सकते है ....
यह सत्य निज अन्तःकरण का सत्त्व भासित ज्ञान है
मन का कसा जाना कसौटी पर मनस-उत्थान है
जो कुछ मिला है आज तक क्या है सुलभ बस होड़ से?
इस जिन्दगी की राह अद्भुत, प्रश्न हैं हर मोड़ से ||1| ......
बिलकुल सही कहा है आपने हम आपनी जिंदगी को होड़ में शामिल करके नहीं बल्कि कर्म करके सफल बना सकते है । होड़ तो बस होड़ है |
बाकि आपकी सभी पंक्तियाँ जीवन को एक नया सात्विक जीवन जीने को उत्साहित करती है |
धन्यवाद ,इस इस प्रेरणा श्रोत रचना को हम सब के सामने रखने के लिए |
वीनस भाई, मेरे प्रयास को मिली आपकी संसुस्ति उत्साहजन्य है. कारण कि, इस छंद-प्रस्तुति का विषय आज की सामान्यतया प्रचलित लेखन परिपाटी के लिहाज से तनिक गूढ़ है. इस छंद और विषय-विशेष पर आपकी प्रतिक्रिया से, सच मानिये, मुझे आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई है. बहुत-बहुत धन्यवाद.
दूसरे, मैंने प्रयुक्त छंद को मात्रिक रूप से पूरी तरह से साधने का प्रयास किया है. इस ओर सुधी दृष्टि की अपेक्षा है.
छंद का विषय मनस-प्रक्षालन तथा वैचारिक ’संतुलन’ से चित्त को आप्लावित करने का आख्यान है. आपने जिन पंक्तियों को विशेष रूप से इंगित किया है वे उस प्रक्रिया की विधि-प्रक्रिया तथा अनुमन्य परिणाम प्रस्तुति हैं. आपकी संवेदना को मेरा हार्दिक अभिनन्दन.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online