For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माना रात है

कोई दिया नही

ठोकरें भी है ,

लेकिन जानता हूँ मैं

उम्मीद का हाथ

तुम नही छोड़ोगे !

नहीं करोगे निराशा की बातें !

चलते रहोगे मेरे साथ

स्वप्न पथ पर !

अ-थके

अ-रुके

अ-रोके !

 

तब तक –

 

-जब तक सुनहली किरने

चूम न लें

मेरे-तुम्हारे सपनो का ललाट !

 

-जब तक सूर्य गा न ले

मेरे तुम्हारे सम्मान में

विजय गीत !

 

-जब तक पीला न पड़ जाए

अँधेरे का चाँद चेहरा !

 

-जब तक कह न उठे

रात की पनीली आँखें

 

“जाओ पथिक

तुम्हारे पाँव से रीसता खून

चमकता रहेगा युगों तक

मेरे तारों भरी चुनरी पर

दीप बनकर !”

 

 

……………………….. अरुन श्री !

Views: 502

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on December 1, 2011 at 2:32pm

श्री अरुण श्री जी,

बहुत सारगर्भित रचना मिली आपके द्वारा| बहुत सुन्दर शिल्प में भावों को सजाया आपने| आपको बहुत बहुत बधाई|


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 30, 2011 at 6:09pm

“जाओ पथिक

तुम्हारे पाँव से रीसता खून

चमकता रहेगा युगों तक

मेरे तारों भरी चुनरी पर

दीप बनकर !”

 

आहा ! बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति, कवि ने मन के भावों को बाखूबी अभिव्यक्त किया है, कविता में अंत की पांच पक्तियां पंच का काम करती है, जबरदस्त हिट, सब मिलाकर एक खुबसूरत कविता, कवि को कोटिश: बधाई |

लेकिन जनता हूँ मैं.............लग रहा टंकण त्रुटि से ’जानता’ .... ’जनता’ हो गया है, मैं ठीक कर दिया हूँ |

 

 

Comment by Arun Sri on November 30, 2011 at 1:33pm

आदरणीय सौरभ सर , आपने मेरी रचना पर इनती विस्तृत चर्चा की उसके लिए धन्यवाद और आभार ! मैं आपको विश्वाश दिलाता हूँ कविता लिखने की तरह ही मेरा पढ़ना और सुनना कभी कम नही होगा ! आपको मेरी रचना अच्छी लगी मेरा सौभाग्य है लेकिन मैं एक नौसिखिया हू और चाहे कितनी भी प्रसंशा क्यों न मिले मुझे मैं हमेशा नौसिखिया ही रहूँगा और सिखने के लिए प्रयाशरत भी ! आपने मेरे लिए जो सुझाव दिया वो शिरोधार्य है ! अब निवेदन है कि हमेशा अपने सानिध्य मे रखे और मेरी रचनाओ पर अपनी पारखी दृष्टी डालें और मार्गदर्शन करते रहे ! सहस्त्र आभार !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 30, 2011 at 1:17pm

अरुन/ अरुण,  सर्वप्रथम इस जैसी रचना के लिये बधाई स्वीकारें.  मन खुश कर दिया आपने.  आपकी प्रस्तुत रचना में काव्यमय भाव के सभी कण विद्यमान हैं. संप्रेषणीयता के स्तर पर रचना वह सबकुछ करती और कहती है जो उद्दात रचनाओं से अपेक्षित है. शिल्प में बतियानापन एक सिरे से प्रभावित करता है.

 

दूसरे, ’रात की पनीली आँखों’ का प्रयोग तो एकदम से अचंभित कर देता है. मैं चकित हूँ इस सुकुमारता पर.

इस अपरिहार्य सदृश रचना हेतु अरुन/अरुण आपको मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ.

 

लेकिन साथ ही, मैं आपसे व्यक्तिगत तौर पर लेकिन सार्वजनिक रूप से कुछ साझा करना चाहता हूँ.  इस तरह की रचना के बाद आपको एक रचनाकार के लिहाज से अब और सजग या जागरुक रहना होगा.  वस्तुतः, मुझे ऐसी किसी रचना के पढ़ लेने के बाद अक्सर डर लगने लगता है. रचयिता से जिस प्रयास और अध्ययन की अपेक्षा होती है वह पूरी क्या होती है, कुछ दिनों पश्चात् रचनाकार शिल्प और व्याकरण के लिहाज से ही हाशिये पर जाता हुआ दिखायी देने लगता हैं.

उम्मीद है, आप मौज़ूदा दौर के भावुक किशोरों / युवाओं की तरह क्षणिक, सतही ’वाह-वाही’ के आग्रही नहीं होंगे.

 

अब इस कविता पर -

 

चलते रहोगे मेरे साथ

स्वप्न पथ पर !

अथके

अरुके

अरोके ! ..

 

रचनाकार अक्सर अपने तथ्य को बहुआयामी और प्रहारक बनाने के लिये इस तरह की शाब्दिक आवृति का प्रयोग करते हैं इससे कविता की संप्रेषणीयता को अपेक्षित नाटकीयता मिल जाती है जो पाठकों को अपने साथ बहा ले जाती है. बहुत अच्छी तरह से आपने इस आवृति का प्रयोग किया है.  लेकिन ’अरोके’ को किस संदर्भ में और  कैसे प्रयुक्त किया है ? 

मात्र ’रोके’ के स्थान पर ’स्वयं को अ-रोके’  कर देना अधिक उचित होता.  इससे तथ्य का कथ्य और प्रभावी हुआ दीखेगा.  यह मेरी समझ भर की सलाह है. सोचियेगा इस पर.

 

 

पुनश्च,  हार्दिक बधाई.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी सर बधाई स्वीकारें सुधार के बाद शेर और निखर गए हैं"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सुधार- उम्रें न सही लम्हे बिताने के लिए आ ग़र इश्क़ है तो साथ निभाने के लिए आ/१ दिल भूल गया है सभी…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मुश्किल में हूँ मैं मुझको बचाने के लिए आ है दोस्ती तो उसको निभाने के लिए आ 1 यही बात इन्हीं शब्दों…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अभी समय मॉंगती है। बहुत से शेर अच्छे शेर होते-होते रह गये हैं। मेरा दृष्टिकोण प्रस्तुत…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिए  गिरह शानदार…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए  मतला और गिरह ख़ूब…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय Aazi जी नमस्कार  अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिए गुणीजनों की इस्लाह से और भी…"
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service