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 दिल लगाया.

वादे बहुत किये.

मोल चुकाया! 

*

बाज,बाज है.

गिद्ध, ' दृष्टि' रखता.

चालबाज है.

*

अजगर भी.

बैठ-बैठ के खाते.

अफसर भी! 

*

रंग-बिरंगी.

गलियाँ जीवन की.

बड़ी बेढंगी!

*

खून खौलता.

मुट्ठियाँ भींच जाती.

मुख बोलता.

*

अविनाश बागडे.

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Comment by AVINASH S BAGDE on February 23, 2012 at 10:51am

Ashutosh ji,rajesh kumari mam,Asha pandey oja mam,v Abhinav ji...sabka aabhar.

Comment by AVINASH S BAGDE on February 23, 2012 at 10:49am

Bhai Ganesh ji BAGI,..

MERE HAIKU PAR SAKARATMK COMMENTS V HOUSALA AFAJAI HETU AABHAR HRIDAY SE.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 22, 2012 at 9:36pm

ये हुई ना बात, हाईकू शिल्प पर बिलकुल खरी रचना , कथ्य भी उम्दा , सभी पक्तियां स्वतंत्र , वाह वाह वाह, गज़ब, बहुत ही खुबसूरत रचना, बधाई आपको ।

Comment by Abhinav Arun on February 17, 2012 at 1:45pm

जीवन और जगत की विसंगतियों को उजागर कर उनपर कटाक्ष करते इन हाइकू के लिए हार्दिक साधुवाद अविनाश जी |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 17, 2012 at 1:26pm

sabhi haaiku jabardast hain.

Comment by asha pandey ojha on February 16, 2012 at 4:24pm

 sashakt haiku 

Comment by AVINASH S BAGDE on February 12, 2012 at 5:23pm

सौरभ जी ,

अंतस की जिन गहराइयों के साथ आप रचनाओं की   समीक्षा करते है उस स्नेह-भाव का मै ह्रदय से कायल हूँ.



सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 12, 2012 at 4:55pm

आदणीय अविनाश भाईजी, आपके हाइकुओं ने मुग्ध कर दिया.  पाँच की पाँचों हाइकू कथ्य, शिल्प और प्रभाव हर तरह से उन्नत. किस एक की कहूँ !?

फिर भी, जिसने बहुत अधिक प्रभावित किया, वे हैं -

बाज,बाज है.
गिद्ध, ' दृष्टि' रखता.
चालबाज है.   .........  

ईशावास्य उपनिषद की अमृत पंक्ति का बरबस स्मरण हो आता है - तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा, मा गृद्धः कस्यस्विद्धनम् !!

*

अजगर भी.
बैठ-बैठ के खाते.
अफसर भी!

हा हा हा हा...   मलूक बाबा के समकक्ष बैठने का विचार हो आया है क्या, सर ?

इन हाइकुओं के लिये बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय अविनाश भाईजी.

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