भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का ||
जो बना था लकड़ी का दर अपने गाँव का ||
थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,
घूमे ख़्यालों में मंज़र अपने गाँव का ||
आँखे हुई नम , देखकर पानी बरसात का ,
जो याद आये जोहड़ अक्सर अपने गाँव का ||
जब गाँव छोड़ा तो वालिद समझाए मुझे ,
झुकने न देना कभी तुम, सर अपने गाँव का ||
कैसी हवा आई है ये मगरिब से "नजील ",
मुझको सताए है अब डर अपने गाँव का ||
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धन्यवाद प्रवीन जी ...... अदनी सी कोशिश को उत्साहित करने हेतु हार्दिक आभार ..........:-)
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