गज़ल........उनको हवा नाम दूँ जाने मैं क्या करूँ .............
वो दूर हैं आज यूँ जाने मैं क्या करूँ
वो मूक हैं आज क्यूँ जाने मैं क्या करूँ
इक बात पे रंज हैं लब चुप से हैं जरा
किसके सहारे लिखूं जाने मैं क्या करूँ
अब पूँछते हैं नज़ारे आकर के भला
उनको हवा नाम दूँ जाने मैं क्या करूँ
संगीत थी , मेरे गीतों की परवाज़ थी
यूँ आज बेसाज़ हूँ जाने मैं क्या करूँ
हम बैठ तन्हा कभीं यादों में खोजते
अब रोज आवाज़ दूँ जाने मैं क्या करूँ
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अतेंद्र कुमार सिंह 'रवि'
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Comment
वाह... अतेन्द्र जी... अच्छी रचना.. हार्दिक बधाई..
क्या बात है अतेन्द्र जी ! हार्दिक बधाई हर शेर पर !!
आशीष भाई ....बधाई देने के लिए दिल से आभार ....और धन्यवाद
मनोज " प्रलयंकर" सर जी ....अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें हम पर ....रचना पसंद आने के लिए ...आपको सह्रिदय धन्यवाद
सौरभ सर जी ...आपने हमारी गज़ल आपको अच्छी लगी और आपने कमेंट्स किया ..आपका दिल से धन्यवाद तथा आभार ....अपना आशीर्वाद हम सदा यूँ ही बनाये रखें ....
राजेश कुमारी जी .....रचना पसंद आने के लिए ...आपको सह्रिदय धन्यवाद
राजेंद्र सर जी ...अपना आशीर्वाद हम पर यूँ ही बनाये रखें
अरुण सर जी ...हमारी रचना आपको पसंद आई इसके लिए आपको दिल से धन्यवाद ....इसी प्रकार अपना स्नेह बनाये रखें हम पर ..
आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह जी रचना पसंद आने के लिए ...आपको सह्रिदय धन्यवाद
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