दूर है चाँद बंदगी हो क्या
दिल की बस्ती में रौशनी हो क्या
और के ख्वाब को न आने दिये
ख्वाब में ऐसी नौकरी हो क्या
मुड़के देखा हमें न जाते हुये
तल्ख़ इससे भी बेरुखी हो क्या
…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on March 31, 2014 at 6:00pm — 16 Comments
अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा
यूँ लगा है की सितारों पे टहल जाऊंगा ll
जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो
तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll
रो लिया चुपके जरा हस लिया हमनें ऐसे
ज़ख्म तो दिल के दबाकर मैं बहल जाऊंगा ll
प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll
है कशिश तीरे नज़र टकरा गयी हमसे जो
इक छुवन से ही जरा उसके मचल जाऊंगा ll
तू खुदा, बंदा मैं हूँ , हाथ जो सर पे रख…
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on February 13, 2014 at 5:30pm — 8 Comments
2122 2122 1222 12
चल दिया है छोड़, क्या जुल्म ये काफी नहीं
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अब हमारी याद भी क्यूँ तुम्हें आती नहीं
चल दिया है छोड़,क्या जुल्म ये काफी नहीं //१//
तू हमारे दिल बसा , इसमें है कैसी खता
हो गया हमसे जुदा याद क्यूँ जाती नहीं //२//
वो हवायें वो फिजायें बुलाती हैं तुम्हें
आ तो जाओ फिर कोई बात यूँ भाती नहीं //३//
मुडके भी देखा नहीं तुम गये जाने…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 8, 2013 at 9:30pm — 7 Comments
2212/2212/2122/212
दिल में तुम्हारे है जो मुझको बताना प्यार से
यूँ भूल कर हमको भला क्या मिला संसार से
यूँ जानकर रुसवा किया आज महफ़िल में भला
जो तोड़कर नाता चले क्यूँ भला इस पार से
चुप सी है धड़कन मेरी अब दिल भी है खामोश तो
घायल हुआ दिल मेरा खंज़र चुभा किस धार से
नादान हूँ मैं या कि अहसान उनका है जरा
वो रोक देते हैं मुझे शर्त कि दीवार से
वो प्यार के मंजर हमें आज भी भूले नहीं
दिल भी…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on October 22, 2013 at 9:30pm — 22 Comments
******* बेवफाई ********
दोस्ती का हक़ तो मैंने अदा किया
पर उसने मुझे कुछ दगा सा दिया
जाने किस बात पे वो था रुका
किस बात पे जाने भुला वो दिया
दोस्ती…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 12, 2013 at 12:30pm — 6 Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on June 29, 2013 at 2:00pm — 4 Comments
कोई दिल को जलाता है कोई दिल को लुभाता है
कोई मासूम बनकर तो यूँ ही दिल में समाता है
ये दुनिया है यहाँ सब लोग चलते दिख ही जाते हैं
कोई दिल को लगाकर ठेस मन में मुस्कुराता है…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on November 14, 2012 at 1:30pm — 4 Comments
गज़ल........उनको हवा नाम दूँ जाने मैं क्या करूँ .............
वो दूर हैं आज यूँ जाने मैं क्या करूँ
वो मूक हैं आज क्यूँ जाने मैं…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on March 16, 2012 at 1:21pm — 15 Comments
बीते कल का फ़साना
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on January 4, 2012 at 2:00pm — 10 Comments
वो इलेक्शन में खड़ा होने लगा है
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on December 23, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
कविता
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on November 26, 2011 at 2:36pm — 3 Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 16, 2011 at 11:00am — 3 Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 12, 2011 at 9:00am — 1 Comment
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 10, 2011 at 10:30am — 4 Comments
एक अश्क गिरा और फूट गया छन से
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 10:30am — 1 Comment
हम करते रहे खेतों में अनवरत काम
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान'
भोर हुई कि चल पड़े डूबके अपने रंग
ले हल कांधो पे और दो बैलों के संग
बहते खून पसीना तज कर अपने मान
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---१
हैं उपजाते अन्न सब मिलकर खेतों में हम
फिर भी मालियत पे इसके हैं अधिकार खतम
सबकुछ समझ कर भी हम बनते है नादान
सबका पेट भरते, कहलाते 'किसान' ---२
भूखे हैं हमसब या अपना है पेट…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 4, 2011 at 9:29am — 2 Comments
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई l
सिहर उठा ये तन मन मोरा
है बरखा बहार आई ||
काँप रहा तन ये अपना
बज रहा यूँ ही कंगना |
तनहा तनहा जीते जीते
अब आँख है भर आई ||
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई ll
सज गए सभी नज़ारे
तन पे गिर रही फुहारें |
धीरे धीरे रुक रुक के
अब तो चल रही पुरवाई ||
हे पिया, तू अब तो आजा
पुरवा ने ली अंगड़ाई…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on August 3, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
ग़ज़ल
लगती है बाज़ार गुज़रते हैं आदमीं
हर रोज़ बिकने खड़े होते हैं आदमीं
उठते हैं हर सुबह जाने क्या सोचकर
इस पेट के आगे पर झुकते हैं आदमीं
तपती दोपहरी में जब लगती है प्यास
बुझे ए कैसे यही सोचते हैं आदमीं …
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 24, 2011 at 9:47am — 2 Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 1:46pm — 2 Comments
"चल रहा आदमी"
वक़्त के हासिए पर लटक रहा आदमी
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 21, 2011 at 11:24am — 3 Comments
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