For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

****तुम हो आँखों में ऐसा लगता क्यूँ है****

तुम हो ख्वाबों में ऐसा लगता क्यूँ है

अब हो यादो में ऐसा लगता क्यूँ है

हाँ तुझको देखा था ना जी ना हमने

तुम हो आँखों में ऐसा लगता क्यूँ है

तुमको पाया है तुमको चाहा हमने

तुम हो साँसों में ऐसा लगता क्यूँ है

अपनी चाहत में तुझको ढूँढा हमने

तुम हो बातों में ऐसा लगता क्यूँ है

भाती है गीतों की वो रातें मेरी

तुम हो साजों में ऐसा लगता क्यूँ है

****************************************

मौलिक और अप्रकाशित

****************************************

अतेन्द्र कुमार सिंह'रवि'

****************************************

Views: 389

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 1:05pm

आपकी इस रचना को वो समय आपसे नहीं मिला है जिसकी चाहत किसी रचना को आप जैसे पुराने प्रयासकर्ता से अपेक्षित रहती है.

आपका प्रयास पुनः सकर्मक हो, अतेन्द्र भाई, तथा हम सुगढ भावभूमि पर आधारित आपकी सार्थक रचनाओं से लाभान्वित होते रहें.

बहरहाल प्रस्तुति पर बधाई व शुभकामनाएँ.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 4, 2013 at 12:38pm

भाई अतेन्द्र जी, बहुत लम्बे अन्तराल के बाद ओबीओ पर आपको देखा, अच्छा लगा. लेकिन निरंतर प्रयास पर लगे विराम की झलक आपकी द्विपदियों में साफ़ साफ दिखाई दे रही है. इधर आपकी रचनाएँ भी ओबीओ के तेशे की तराश से महरूम रह गईं प्रतीत हो रही हैं. भाई अरुण शर्मा अनंत ने द्विपदी के जिस पद का ज़िक्र किया वह मेरी भी समझ में नहीं आ रहा. इस प्रकार की अस्पष्टता पाठक को रचना से दूर करती है. बहरहाल इस सद्प्रयास हेतु मेरी बधाई स्वीकारें.

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on July 4, 2013 at 8:26am

भाई अरुण जी सबसे पहले हम आपके आभारी है कि आपने हमारी रचना को पढने के लिए समय निकाला ......वैसे आपका प्रश्न करना जायज है परन्तु उत्तर भी दूसरी लाइन में ही था ....फिर आपको स्पष्ट नहीं हो रहा है तो बताना चाह रहा हूँ कि मैंने क्या सोचकर लिखा था .....यह एक प्रेमी व्यथा कहे या अनदेखा प्रेम जो मात्र एक झलक दूर से देखा हो और अपनी प्रेमिका से इजहार करने पर प्रेमिका द्वारा यह कहना कि यह प्रेम कैसे हो सकता है जबकि हमने एक दूसरे को देखा तक नहीं ...तब प्रेमी कहता है हाँ तुझको देखा था ना जी ना हमने........

तुम हो आँखों में ऐसा लगता क्यूँ है......

वैसे देखा जाय तो प्रेम तो कही भी किसी से और कैसे भी हो सकता है .....कभी कभी किसी कि बात दिल को छू जाती है तो कभी अनजाने ही दिल बेचैन हो उठता है किसी के लिए ...शायद वो रिश्ता किसी पिछले जन्म का हो ....

वैसे आपको क्या लगता है ......आपसे मार्गदर्शन चाहूँगा कि ये लाइन ठीक है कि नहीं ......अतेन्द्र

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 1, 2013 at 3:49pm

भाई अतेन्द्र कुमार सिंह'रवि' जी प्रयास हेतु बधाई किन्तु आपने रचना को समय नहीं दिया, शिल्प पर तनिक अधिक ध्यान दें.

हाँ तुझको देखा था ना जी ना हमने ? मुझे स्पष्ट नहीं हुआ आप क्या कहने चाह रहे हैं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
8 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
20 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service