For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-चादनीं तुम मेरी बनीं हो क्या

दूर है चाँद बंदगी हो क्या

दिल की बस्ती में रौशनी हो क्या 

 

और के ख्वाब को न आने दिये

ख्वाब में ऐसी नौकरी हो क्या 

 

मुड़के देखा हमें न जाते हुये

तल्ख़ इससे भी बेरुखी हो क्या 

 

ज़ख्म देकर तो खुश हुये उस दिन

मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या 

 

गा तो सकता था मैं भी तेरी ग़ज़ल

यूँ कभीं मेरी धुन सुनीं हो क्या

 

साथ सदियों तलक दे सकता था मैं

दो कदम साथ तुम चली हो क्या

 

सोचकर क्यूँ ये रात ढलती रही

तुम हमें भी यूँ सोचती हो क्या

 

ख़त मेरे सामनें जलाये फ़क़त

और तेरी ये दिल्लगी हो क्या

 

बन तो सकता था मैं भी यूँ तेरारवि

चादनीं तुम मेरी बनीं हो क्या

===============================

मौलिक और अप्रकाशित-अतेन्द्र कुमार सिंह'रवि'

===============================

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on April 15, 2014 at 11:23pm

आदरनीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम .....हमें आपके प्रतिक्रिया की निरंतर प्रतीक्षा रहती है ....आपके सुझाव और मार्गदर्शन से ही यह हमारा प्रयास संभव हो सका है और आगे भी आपके आशीर्वाद की कामना करते हैं .....आपको हमारी गज़ल पसंद आई ...सहृदय धन्यवाद आपको

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on April 15, 2014 at 11:18pm

आदरणीया प्राची दीदी आपको हमारी गज़ल पसंद आई हम आपके आभारी हैं ....सहृदय धन्यवाद आपको

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on April 15, 2014 at 11:16pm

आदरणीय बैद्यनाथ जी आपने हमारी गज़ल के जिस शेर को पसंद किया और सराहना की ...आभार सहित बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on April 15, 2014 at 11:13pm

आदरणीय नीरज जी आपको हमारी गज़ल पसंद आई ....आपको सहृदय धन्यवाद

Comment by Atendra Kumar Singh "Ravi" on April 15, 2014 at 11:11pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपके सुझाव पर हम गौर करेंगे .....आपको गज़ल पसंद आई ...आपको बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 15, 2014 at 10:57pm

मुड़के देखा हमें न जाते हुये

तल्ख़ इससे भी बेरुखी हो क्या ... .... वाह !

बहुत खूब !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2014 at 7:08pm

सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० अतेन्द्र जी 

आदरणीया राजेश कुमारी जीने बहुत ही सम्यक सुझाव दिए हैं , उनपर अवश्य ही गौर फरमाएं 

शुभकामनाएं 

Comment by Saarthi Baidyanath on April 3, 2014 at 4:53pm

बहुत ही दिलकश शेर 

बन तो सकता था मैं भी यूँ तेरा ‘रवि

चादनीं तुम मेरी बनीं हो क्या....वाह ..बहुत बहुत बधाई 

Comment by Neeraj Neer on April 3, 2014 at 8:23am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..

साथ सदियों तलक दे सकता था मैं

दो कदम साथ तुम चली हो क्या... क्या कहने ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 2, 2014 at 2:35pm

दूर है चाँद बंदगी हो क्या

दिल की बस्ती में रौशनी हो क्या ------वाह्ह्ह सुन्दर मतला 

 

और के ख्वाब को न आने दिये-----आने दिया---- कर लीजिये ख़्वाब एक वचन है तो दिया आएगा 

ख्वाब में ऐसी नौकरी हो क्या 

 

साथ सदियों तलक दे सकता था मैं----इसकी बह्र एक बार जांच लें ----दे की मात्रा मेरे ख्याल से यहाँ नहीं गिरा सकते और शब्द भी अधिक लग रहे हैं -----साथ सदियों तलक मैं दे सकता ---करके देखिये बात बन जायेगी 

सुन्दर ग़ज़ल हुई अतेन्द्र जी बहुत -बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
9 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
10 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service