अपने हाथों के लकीरों को बदल जाऊंगा
यूँ लगा है की सितारों पे टहल जाऊंगा ll
जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो
तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll
रो लिया चुपके जरा हस लिया हमनें ऐसे
ज़ख्म तो दिल के दबाकर मैं बहल जाऊंगा ll
प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll
है कशिश तीरे नज़र टकरा गयी हमसे जो
इक छुवन से ही जरा उसके मचल जाऊंगा ll
तू खुदा, बंदा मैं हूँ , हाथ जो सर पे रख दे
" मैं " से यूँ तोड़ के नाते तो पिघल जाऊंगा ll
शायरी मेरी निशानीं जो रहे बाकी यहाँ
ऐक दिन कह के कहानी मैं भी चल जाऊंगा ll
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मौलिक और अप्रकाशित
Comment
जर्रे-जर्रे में इनायत है खुदाया अब तो
तू है दिल में बसा मैं खुद में ही ढल जाऊंगा ll.........बहुत खूब आदरणीय....जीतनी तारीफ़ की जाय कम.....
आदरणीय गिरिराज जी सादर नमस्कार ....ग़ज़ल की बह्र कुछ इस प्रकार है .....2122/1122/1122/22या 112
आदरणीय अतेन्द्र जी...बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दी बधाई ..सादर
प्यार में गम है मिला दिल हो गया ये घायल
ठोकरें खा के मुहब्बत में संभल जाऊंगा ll..ये शेर मुझे बेहद रूप से पसन् आया .
बहुत सुंदर गजल, बधाई आदरणीय अतेन्द्र जी
आदरणीय अतेन्द्र भाई , गज़ल का प्र्यास बहुत अच्छा है , बधाइयाँ ॥ आपने बह्र का उल्लेख नही किया है , इस लिये जादा कुछ नही कह सकता ॥
बहुत खूब .... |
आप सब सुधी जनों से विनम्र आग्रह है कि मेरी इस ग़ज़ल में अगर कोई खामी तो तो जरूर इंगित करने कि कृपा करें ....हम आपके आभारी रहेगें ...
बहुत सुन्दर गज़ल .. बधाई आप को
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