रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ
थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ
हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ
घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं
नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था
हुआ जो अब पराया वो अपना कब था
कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी
कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी
देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी
जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी
देती कफ़न क्या कैसे देती आग थे तार तार वस्त्र और उसके भाग्य
आस थी मिले कफ़न दूँ चिता लाल को दे न सकी हाय रे दुर्भाग्य
देख दशा उस लाल की प्रक्रति भी जार जार रोई
हो न ऐसा कभी ऐ खुदा चिता/कफ़न को भी तरसे कोई
Comment
आदरणीय saurabh जी, सादर अभिवादन.
आदरणीय प्रदीप जी,
सादर !
आपने इस कविता को तराशने का जो आदेश दिया था, उसका पालन कर रहा हूँ -
"रात के अंतिम प्रहर में मैं अकेला था जहां,
थी अज़ब वीरानियाँ, था निपट सन्नाटा वहाँ !
मौत की मादक हँसी, अदृश्य होकर गूंजती,
भीत तन में हो रही थी, कुछ अजब अनुभूति सी !
.
एक माता पुत्र के शव को लिटाये गोद में,
शीश धरती से लगाकर रो रही थी क्षोभ से !
वस्त्र के धागे बचे थे उसकी अपनी गात पर,
क्या करे, जाए कहाँ, लाये कफ़न कुछ मांगकर !
.
देख अबला की व्यथा, चीत्कार सी मन में उठी,
बेसहारा हो गयी इस जननि की दुनिया लुटी !
हाय ! कैसी बेबसी, बेटा पडा है बे-कफ़न,
सोचती है बे-कफ़न कैसे करूँ इसको दफ़न !
.
दृश्य ऐसे मत दिखाना जिंदगी में फिर कभी,
दे न मालिक तू किसी को, हाय ! ऐसी बेबसी !!
इस भाव दशा को कैसे कोई सहन करे.
शब्द हों न हो विधा
बस संप्रेषण हो
जो कुछ छाया, भर आया
जो भर आया वह निस्सृत हो
यही संसरण संप्रेषण है भाव घने हों उद्बोधन है
कहो नहीं क्या यह भी कविता ?!!
आदरणीय प्रदीप जी, आपकी प्रस्तुत रचना ने मुग्ध कर दिया. भाव बह चले, अन्यथा न लेंगे.
सादर बधाई इस अद्भुत चिंतन के लिये.
आदरणीयशाही जी , सादर अभिवादन. २४ घंटा बत्ती की व्यवस्था है. लाइन जोड़े रखिये. पुनः स्वागत है रचना पर. . सराहना हेतु धन्यवाद.
आदरणीया नीरजा जी. सादर , आपने आनंद लिया, सराहा , आभार.
आदरणीय राजीव जी , सादर. सराहना हेतु धन्यवाद.
आदरणीया प्राची जी. सादर , आपने मर्म को समझा , सराहा. बहुत बहुत धन्यवाद .
स्नेही वाहिद जी. स्थिति स्पष्ट कर दी है. यंहा सिखने आया हूँ. राह दिखाइए आभार.
स्नेही अश्वनी जी. स्थिति स्पष्ट कर दी है. यंहा सिखने आया हूँ. मार्ग दर्शन कर रचना अमर बनाने का कष्ट करें . आभार.
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