(प्रेमी की मनः स्थिति )
कोई नहीं है चाहता विछड़े वो यार से,
दोनो का यदि मिलन हो विदाई भी प्यार से .
हो आत्मा में वास तो फिर प्रियतमा मिले ,
होता चमन गुलिस्तां है जैसे बहार से ..
* * * * *
मुझको ये था यकीन कि है प्यार भी तुम्हे,
मेरे बगैर जीना तो दुश्वार है तुम्हे.
ये बंदिशें थीं प्यार की जो उलझने मिली,
ये सोंचना गलत था कि स्वीकार है तुम्हें..
* * * * *
मैं जितना पास जाऊँ वो उतना ही दूर है,
वो मानती नहीं है कि वो मेरी हूर है.
जीता हूँ आज भी मैं उसी को ही देखकर,
उसको नहीं पता मेरे चेहरे का नूर है...
* * * * *
मेरी कहानी का कोई किरदार नहीं है,
मैं बेंचता हूँ प्यार खरीदार नहीं है.
मृदु भी तो दफ़न हो गया है उनके प्यार में,
क्या मेरा प्यार अब भी असरदार नहीं है..
* * * * *
शैलेन्द्र कुमार सिंह 'मृदु'
Comment
श्री आशीष जी रचना की सार्थकता सिद्ध करने के लिए आपका ह्रदय से आभार
मनःस्थिति का सुन्दर वर्णन।
मेरी कहानी का कोई किरदार नहीं है,
मैं बेंचता हूँ प्यार खरीदार नहीं है.
मृदु भी तो दफ़न हो गया है उनके प्यार में,
क्या मेरा प्यार अब भी असरदार नहीं है.
ये पंक्तियाँ मुझे खासतौर पर पसन्द आयीं।
बधाई
सौरभ सर सादर नमन आपकी प्रतिक्रिया मात्र से एवं आप से समय समय पर मिलते रहने वाले सुझवों के कर कारण मन में एक नया जोश आ जाता है . रचना पसंद करने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद
मुक्तकों के लिये बधाई. अच्छा प्रयास हुआ है शलेन्द्रजी.
बहुत खूब.
राजेश कुमारी मैम आपने रचना के गहन दर्शन कर अपनी प्रतिक्रिया दी इसके लिए बहुत बहुत आभार
karunras ke aalamban se premi harday ki samvedna se autprot rachna bahut pasand aai.badhaai aapko.Shalendra ji.
महिमा जी भावाभियक्ति को सराहने के लिए हृदय से आपको कोटि कोटि धन्यवाद
हरीश सर सादर नमन रचना पसंद करने के लिए ह्रदय से आभार
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