अभेद्य है ये दुर्ग अभी न सेंध से प्रहार कर I
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
धन की बहुत लालसा बिके हुए जमीर हैं.
तन के महाराज सभी मन के ये फ़कीर हैं.
विवश अब नहीं है तू , देख तो पुकार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
कौम अब पुकारती न और इन्तजार कर,
रक्त से बलिदान के सींचित इस जमीन पर,
मिट सके भेद सभी जीवन को बलिदान कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
नित शाम ढले भेडिये अब झुण्ड में है आ रहे
नित कृत्य दानवों से करके कौम को लजा रहे
दूध की है लाज तुझे अब सोच ना विचार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
मिट गए सिंदूर कई जो सत्य को पुकार कर
गर्व उन्हें फिरभी यहाँ इस देश को निहार कर
लानते ना दे अब इस ढ्कोसली सरकार पर,
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
हजारों द्रष्टियां लगी इस तेरे जन करोड़ पर
गरीब रक्त बेचते यहाँ अंग अंग मरोड़ कर
बुझ गए है दीप कई भूख से चीत्कार कर
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर
प्रहार कर प्रहार कर.....
Comment
लानते ना दे अब इस ढ्कोसली सरकार पर,
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
अशोक जी , सत्य ही लानतें देने का समय , समय से कुछ पूर्व ही शेष हो गया है | प्रहार ही एकमात्र रास्ता रह गया है | जब रक्त बेच बेच कर ही जीवन जीना है तो संघर्ष में रक्त का बहाना ज्यादा उचित है | प्रेरणादायी रचना | बधाई |
ब्लॉग के फीचर होने पर बधाई के लिए महिमा जी आपको धन्यवाद एवं ब्लॉग को फीचर श्रेणी में चयन के लिए सम्पादक मंडल का आभार.
adarniya ashok ji, sadar abhivadan.
vah sir ji pahli ball vo bhi boundry ke bahar 6 run ke liye. badhai.
आदरणीय अशोक जी, सादर नमस्कार. बहुत सुन्दर रचना. एक ललकार जो सत्तायाशो के कर्ण भेद दे! इस वीर रस से ओत प्रोत रचना के लिए हार्दिक बधाई.
ek aujpoorn, sandesh deti hui josh ka sanchaar karti hui kavita.....atiuttam badhaai sweekaren.
आदरणीय प्रदीप जी, सौरभ जी, संदीप जी और शाही जी आप सभी गुनी जनों का आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसन्नता हुई.धन्यवाद.
आदरणीय अशोक जी,
ओजस्वी शब्दों के साथ प्रवाहमय कविता से इस मंच पर आगाज़ किया आपने| स्वागत है आपका...! सादर,
क्या शब्द चयन और क्या प्रवाह ? गेयता के लिहाज से यह कविता छलछलाती हुई सी निकलती जाती है. ऊर्जस्विता को नसों में घोलती इस रचना के लिये भाई अशोक कुमार जी हृदय से धन्यवाद.
मिट गए सिंदूर कई जो सत्य को पुकार कर
गर्व उन्हें फिरभी यहाँ इस देश को निहार कर
लानते ना दे अब इस ढ्कोसली सरकार पर,
बिखेरना है धज्जियां, सत्य का तू वार कर II
प्रहार कर प्रहार कर........
आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन.
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