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हर मजहब के दुःख -दर्द एक सामान होते हैं
फिर क्यूँ पराई पीर से हम अनजान होते हैं

क्यूँ फेंकते पत्थरों को हम उनके घरों पर
जब खुद के भी तो शीशों के मकान होते हैं

उन लोगों की कम सोच का क्या करियेगा
जिनकी वजह से रिश्ते कुछ बेजान होते हैं

बन जाते हैं वो सफ़र में मुसीबतों के सबब
कई दफह जब रास्ते बेहद सुनसान होते हैं

मत छूना कभी जो लावारिस पड़े हैं राह में
मुमकिन हैं छुपे मौत का वो सामान होते हैं

मिलके गले वो घोंप दे खंजर ये क्या पता
हिज़ाब -ए- दोस्ती की आड़ में शैतान होते हैं

बड़े ही खौफनाक होते हैं वो चेहरे खूबसूरत
जिनकी सूरत में छुपे बदसूरत इंसान होते हैं
*****

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:43pm

hardik dhanyavaad ganesh ji aapne sher ke beech me gap de diya.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:42pm

bahut bahut aabhar Ganesh ji meri ghazal ko saarthakta mil gai. par post karte vaqt har sher me gap diya tha pata nahi publish ek saath kaise ho gai.ghazal me sher alag alag achche lagte hain.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 5, 2012 at 5:30pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी , कथ्य बहुत ही बढ़िया है, काफिया रदीफ़ का निर्वहन भी आपने बढ़िया से किया है, बधाई स्वीकार करे |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:14pm

dear Prachi thanks a lot .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 5, 2012 at 5:13pm

Pradeep Kumar ji aapko meri ghazal pasand aai iske liye shukria.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 5, 2012 at 4:45pm

फिर क्यूँ पराई पीर से हम अनजान होते हैं 

क्यूँ फेंकते पत्थरों को  हम उनके घरों पर  
जब खुद के भी तो शीशों के मकान होते हैं
उन लोगों की कम सोच का क्या करियेगा  
जिनकी वजह से रिश्ते कुछ बेजान होते हैं
aadarniya mahodaya , sadar abhivadan. ab kya kahoon..? bahut khoob jab aapne hi kah diya. badhai.

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