तुम हर पल क्यूँ सजग रहे
कौन व्यथा है दबी हिय में
किस अगन में संत्रस्त रहे |
घूर रहे क्यूँ रक्तिम चक्षु
कुपित अधर क्यूँ फड़क रहे
दावानल से केश खुले क्यूँ
तन से शोले भड़क रहे |
प्रदूषण ने ध्वस्त किये
जो, बहु तेरे संबल रहे
कतरा -कतरा टूट-टूट कर
चुपके -चुपके पिघल रहे |
हे हिमगिरी,हे हिमनद
पिघलते रहे जो
यूँ ही अप्रतिहत
प्रलय भयावही आएगी
जगत जननी, पावन धरिणी
सब जल थल हो जायेगी |
कष्ट निवारक ,विपदा हारक
हे जगदीश ,हे त्रिपुरारी
उसे जगा दो अपने बल से
सो रही जो दुनिया सारी|
*****
Comment
प्रदीप कुमार कुशवाह जी सराहना हेतु हार्दिक बधाई
कष्ट निवारक ,विपदा हारक
हे जगदीश ,हे त्रिपुरारी
उसे जगा दो अपने बल से
सो रही जो दुनिया सारी|
jagrat karne vala kavy aur sudar prarthna. badhai
बहुत बहुत आभार सौरभ जी
शलेन्द्र म्रदु जी हर्दय से आभारी हूँ इस सराहना के लिए
हर्दय से आभारी हूँ सीमा जी इस सराहना के लिए |
बहुत बहुत हार्दिक आभार सरिता जी
उद्येश्यपरक रचना.. .
शुभेच्छा
मैम एक विशिष्ट कृति के लिए बधाई स्वीकार करें
आदरणीय राजेश कुमारी जी, सादर नमस्कार,
जी हाँ महिमा जी यह बहुत गंभीर समस्या है जिस पर विचार करना तथा उस समस्या का निदान करना बहुत जरूरी है आपने इस तथ्य को दिल से महसूस किया हार्दिक आभार आपका
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