मोहब्बत के फ़न कभी बिकते नहीं बाज़ारों में
इश्क के फूल अब खिलते नहीं गुलनारों में
बिखर गई है किसी राह में वफ़ा की खुशबु
वो गुंचे पहले से मिलते नहीं गुलबहारों में
एहसास जो रूहे जमीं से निकलते थे कभी
फ़कत याद हैं अब ढलते नहीं अशआरों में
वफ़ा के दरिया में अब डूब के क्या करियेगा
वो दर्दे शरारे कभी दिखते नहीं तलबगारों में
कैसे बनाये कोई अपनी मोहब्बतों के महल
ताज से बिम्ब नहीं टिकते सभी दीवारों में
जिन पर नाज था हिन्द की सल्तनत को
वो जवाँ चेहरे अब दिखते नहीं अखबारों में
लगता है अब उनमे भी बढ़ गई दूरियां
परिंदे वो पहले से उड़ते नहीं कतारों में
*****
Comment
प्रदीप कुमार कुशवाह जी तारीफ के लिए हार्दिक आभार |
लगता है अब उनमे भी बढ़ गई दूरियां
परिंदे वो पहले से उड़ते नहीं कतारों में
आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन.
shukria veenas ji aabhar.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
haardik aabhar shalendra ji .
किस किस शेर की तारीफ करूँ मैं बहुत ही उम्दा एवं भावपूर्ण गजल, बधाई स्वीकार करें
हाँ महिमा जी आपका कहना दुरस्त है कहते हैं न खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है ....बहरहाल आपकी प्रतिक्रिया सर आँखों पर
संदीप द्विवेदी जी बहुत- बहुत शुक्रिया ग़ज़ल की सराहना करने के लिए आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को बल मिला |
लगता है अब उनमे भी बढ़ गई दूरियां
परिंदे वो पहले से उड़ते नहीं कतारों में ....
आदरणीया राजेश दी , नमस्कार
वाह वाह क्या खूब कही ...इंसानों के बीच रहेंगे तो ये तो होना ही था,...
बधाई आपको
आदरणीया बहुत ही उम्दा ग़ज़ल पेश की आपने| बहुत ही ख़ूबसूरत अलफ़ाज़ और वैसी ही कहन भी| पढ़ कर अत्यधिक आनंदित हुआ| ये तीन अशआर विशेष रूप से पसंद आये| :))
एहसास जो रूहे जमीं से निकलते थे कभी
फ़कत याद हैं अब ढलते नहीं अशआरों में
जिन पर नाज था हिन्द की सल्तनत को
लगता है अब उनमे भी बढ़ गई दूरियां
परिंदे वो पहले से उड़ते नहीं कतारों में
वो जवाँ चेहरे अब दिखते नहीं अखबारों में
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online