For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मोहब्बत के फ़न कभी बिकते नहीं बाज़ारों में  इश्क के फूल अब  खिलते नहीं गुलनारों में बिखर गई है किसी राह में वफ़ा की खुशबु  वो गुंचे पहले से मिलते  नहीं  गुलबहारों में    एहसास जो रूहे जमीं से निकलते…

मोहब्बत के फ़न कभी बिकते नहीं बाज़ारों में 

इश्क के फूल अब  खिलते नहीं गुलनारों में


बिखर गई है किसी राह में वफ़ा की खुशबु 

वो गुंचे पहले से मिलते  नहीं  गुलबहारों में

 

 एहसास जो रूहे जमीं से निकलते थे कभी 

फ़कत  याद हैं अब ढलते नहीं अशआरों में 


वफ़ा के दरिया में अब  डूब के क्या करियेगा

वो दर्दे शरारे कभी दिखते नहीं तलबगारों में 


 कैसे बनाये कोई अपनी मोहब्बतों के महल

ताज से बिम्ब नहीं टिकते सभी  दीवारों में 


जिन पर नाज था  हिन्द की सल्तनत को 

वो जवाँ चेहरे अब दिखते नहीं अखबारों में


लगता  है  अब उनमे भी  बढ़ गई   दूरियां 

 परिंदे वो पहले  से  उड़ते नहीं  कतारों में  

              *****

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 28, 2012 at 8:06am

प्रदीप कुमार कुशवाह जी तारीफ के लिए हार्दिक आभार |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 24, 2012 at 12:10pm

लगता  है  अब उनमे भी  बढ़ गई   दूरियां 

 परिंदे वो पहले  से  उड़ते नहीं  कतारों में  

आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन. 

बहुत सही फ़रमाया है आपने. कितना बदलाव आ चुका है स्वभाव में. बधाई.



सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 23, 2012 at 3:18pm

shukria veenas ji aabhar. 

Comment by वीनस केसरी on April 23, 2012 at 3:15pm

सुन्दर भावाभिव्यक्ति


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 22, 2012 at 10:28pm

haardik aabhar shalendra ji .

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 22, 2012 at 9:47pm

किस किस शेर की तारीफ करूँ मैं बहुत ही उम्दा एवं भावपूर्ण गजल, बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 22, 2012 at 5:32pm

हाँ महिमा जी आपका कहना दुरस्त है कहते हैं न खरबूजे को देख कर खरबूजा रंग बदलता है ....बहरहाल आपकी प्रतिक्रिया सर आँखों पर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 22, 2012 at 5:29pm

संदीप द्विवेदी जी बहुत- बहुत शुक्रिया ग़ज़ल की सराहना करने के लिए आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को बल मिला |

Comment by MAHIMA SHREE on April 22, 2012 at 5:13pm

लगता  है  अब उनमे भी  बढ़ गई   दूरियां 

 परिंदे वो पहले  से  उड़ते नहीं  कतारों में  ....

आदरणीया राजेश दी , नमस्कार

वाह वाह क्या खूब कही ...इंसानों के बीच रहेंगे तो ये तो होना ही था,...

बधाई आपको

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 22, 2012 at 3:02pm

आदरणीया बहुत ही उम्दा ग़ज़ल पेश की आपने| बहुत ही ख़ूबसूरत अलफ़ाज़ और वैसी ही कहन भी| पढ़ कर अत्यधिक आनंदित हुआ| ये तीन अशआर विशेष रूप से पसंद आये| :))

एहसास जो रूहे जमीं से निकलते थे कभी 

फ़कत  याद हैं अब ढलते नहीं अशआरों में

जिन पर नाज था  हिन्द की सल्तनत को 

लगता  है  अब उनमे भी  बढ़ गई   दूरियां 

 परिंदे वो पहले  से  उड़ते नहीं  कतारों में

वो जवाँ चेहरे अब दिखते नहीं अखबारों में


कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
5 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
9 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service