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मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा

 

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां, देखने वाला बेमौत मर जायेगा.

                     होंठ तेरे गुलाबी ,शराबी नयन.

                    संगमरमर सा उजला है , तेरा बदन.

रूप यूँ ना सजाया - संवारा करो, टूट कर आईना भी बिखर जायेगा.

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

                     सारी दुनिया ही तुम पर, मेहरबान है.

                      देख तुमको फ़रिश्ते भी, हैरान हैं.

मुसकुरा कर अगर तुम इशारा करो , आदमी क्या - खुदा भी ठहर जायेगा.

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

                  तुम तसव्वुर की रंगीन, तस्वीर हो .

                  सच तो ये है कि लाखों कि, तकदीर हो.

मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा, खुद ब खुद भाव उनका निखर जायेगा.

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

                    ............... सतीश मापतपुरी

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Comment by Dr.Prachi Singh on July 2, 2012 at 10:19am

बहुत प्यारा मधुर कोमल गीत लिखा है आपने आ. सतीश मापतपुरी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार  करे. सादर.

Comment by satish mapatpuri on April 11, 2012 at 12:04am

दिल से आभार भ्रमर जी

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 7:09pm

ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.

वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां, देखने वाला बेमौत मर जायेगा.

सतीश जी बहुत सुन्दर और मनभावन  गीत , 

सतीश जी बहुत सुन्दर और मनभावन  गीत , 
मै तो गाने लगा गुनगुनाने लगा 
आप की धुन को धडकन बनाने लगा 
आज आये जो चन्दा तो कह दूं उसे 
ओढ़ घूँघट निकलना जरा देर से 
मै तो खुद को अरे हूँ भुलाने लगा 
बधाई हो 
.......भ्रमर ५ 
Comment by satish mapatpuri on April 6, 2012 at 2:19pm

मृदु जी ,संदीप जी तथा महिमा जी, आप तीनों का दिल से आभार

Comment by MAHIMA SHREE on April 6, 2012 at 1:11pm
आदरणीय सतीश सर ,
नमस्कार ,
पता नहीं क्यों ,मुझे आपके गीत पढ़ कर अनायास ही मुहमद रफ़ी साहब, गुलाम अली ,और जगजीत सिंह इन तीनो की याद बरबस आ गयी..उर इनके द्वारा गाये गए गीतों और गजलो को याद करने लगी.....
बहुत-२ बधाई आपको..
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 6, 2012 at 12:59pm

आदरणीय सतीश जी,

आपके गीत की लयात्मकता के क्या कहने हैं! जैसे ही इसे पढ़ना शुरू किया आपका गीत अपनेआप ही धुन में ढलता चला गया| वाह! बहुत ही सुन्दर गीत श्रृंगार रस से परिपूर्ण| मेरी ओर से हार्दिक बधाई!!

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 11:11am

श्री सतीश सर सादर नमन, गीत पढना शुरू किया तो बस गुनगुनाने लगा मुग्ध हो गया  आपके गीत पर, सर बधाई स्वीकार करें

Comment by satish mapatpuri on April 6, 2012 at 1:10am

नोकरिया ऐ भाई जी बड़ा जान मारे ....... लेखा के उप निदेशक ... मार्च के महीना .. मार्च से निजात मिलल  त तनिका तबियत   फड़कल अउरी गीत में तनिका मुलामियत आ गइल ...... सराहना के लिए आभार आदरणीय


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Comment by Saurabh Pandey on April 6, 2012 at 12:22am

आदरणीय सतीश भाईजी,  आपको बहुत दिनों बाद देख रहा हूँ.   ए भाई ! कहवाँ रहनी हँऽ?

लेकिन आपने तो सारे उलाहनों से सीधे भिड़ने का मन बना रखा है. ..  :-))  क्या गीत है !

इस मुलायम गीत के लिये आपको सादर बधाइयाँ.

Comment by satish mapatpuri on April 6, 2012 at 12:12am

हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद अश्विनीजी

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