ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां, देखने वाला बेमौत मर जायेगा.
होंठ तेरे गुलाबी ,शराबी नयन.
संगमरमर सा उजला है , तेरा बदन.
रूप यूँ ना सजाया - संवारा करो, टूट कर आईना भी बिखर जायेगा.
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
सारी दुनिया ही तुम पर, मेहरबान है.
देख तुमको फ़रिश्ते भी, हैरान हैं.
मुसकुरा कर अगर तुम इशारा करो , आदमी क्या - खुदा भी ठहर जायेगा.
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
तुम तसव्वुर की रंगीन, तस्वीर हो .
सच तो ये है कि लाखों कि, तकदीर हो.
मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा, खुद ब खुद भाव उनका निखर जायेगा.
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
............... सतीश मापतपुरी
Comment
बहुत प्यारा मधुर कोमल गीत लिखा है आपने आ. सतीश मापतपुरी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करे. सादर.
दिल से आभार भ्रमर जी
ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा.
वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां, देखने वाला बेमौत मर जायेगा.
सतीश जी बहुत सुन्दर और मनभावन गीत ,
मृदु जी ,संदीप जी तथा महिमा जी, आप तीनों का दिल से आभार
आदरणीय सतीश जी,
आपके गीत की लयात्मकता के क्या कहने हैं! जैसे ही इसे पढ़ना शुरू किया आपका गीत अपनेआप ही धुन में ढलता चला गया| वाह! बहुत ही सुन्दर गीत श्रृंगार रस से परिपूर्ण| मेरी ओर से हार्दिक बधाई!!
श्री सतीश सर सादर नमन, गीत पढना शुरू किया तो बस गुनगुनाने लगा मुग्ध हो गया आपके गीत पर, सर बधाई स्वीकार करें
नोकरिया ऐ भाई जी बड़ा जान मारे ....... लेखा के उप निदेशक ... मार्च के महीना .. मार्च से निजात मिलल त तनिका तबियत फड़कल अउरी गीत में तनिका मुलामियत आ गइल ...... सराहना के लिए आभार आदरणीय
आदरणीय सतीश भाईजी, आपको बहुत दिनों बाद देख रहा हूँ. ए भाई ! कहवाँ रहनी हँऽ?
लेकिन आपने तो सारे उलाहनों से सीधे भिड़ने का मन बना रखा है. .. :-)) क्या गीत है !
इस मुलायम गीत के लिये आपको सादर बधाइयाँ.
हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद अश्विनीजी
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