जान ले लेगा वो तिल, लब पे जो बनाया है .
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
हुस्न की देवी तेरे ही दम से, खिलते हैं फूल दिल के गुलशन में.
देखकर तुमको ही ये हुरे ज़मीं , पलते हैं इश्क दिल की धड़कन में.
हर कोई देखता है तुमको ही, रब तुम्हें आईना बनाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
कल कहीं तुम जुदा ना हो जाओ , बात ये सोचकर मैं डरता हूँ.
अपने गीतों में अब सदा के लिए , कैद तुमको मैं आज करता हूँ .
आके छुप जाओ तुम ख्यालों में, मेरे शब्दों ने ही सजाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
----- सतीश मापतपुरी
Comment
प्रदीप जी सराहना के लिए आभार . शर्मा साहेब, खूबसूरती का बखान मुझसे सिखाने की बात कहकर , आपने मुझे जो मान दिया उसके लिए सलाम करता हूँ . चटखते रंग में भटकते हुए आदरणीय सौरभ जी ,मित्र आपकी अदा पर हम कब से फ़िदा हैं ........ सराहना के लिए आभार . जवाहर जी , आपने सराहा ... मैं धन्य हुआ
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
खूबसूरत अंदाज प्यारी प्रस्तुति ..मेरी कलम ने तुम्हे महबूबा बनाया .....
भाई सतीशजी, इसे कहते हैं गीत को चटख रंग देना !
भँवरिया का लउकौलऽ साहेब, निकहा ओही में हमहूँ मय बाथा-बीपत बूड़ जइतीं.. . :-))))))))))))))
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है . !! ख़ूबसूरती का बखान कैसे किया जाता है !! आज आपसे सिखा !! बहुत खूब !! सतीश ji !!
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है . nishchit taur par aapki kalam ne mehbooba banaya hai.badhai.
राजेश कुमारी जी तथा भ्रमर जी, आप दोनों का आभार
मुस्कुराती हो जब तो गालों पे, जानलेवा भंवर सा बनता है.
खोलती हो अदा से जब पलकें , झील में दो कँवल सा खिलता है.
साथ जिसको नहीं मिला तेरा, क्यों यहाँ ज़िन्दगी गंवाया है.
मेरी कलम ने तुम्हें , महबूबा बनाया है .
खूबसूरत अंदाज प्यारी प्रस्तुति ..मेरी कलम ने तुम्हे महबूबा बनाया ..जय श्री राधे
वाह सतीश जी श्रृंगार रस में कलम डुबाकर लिखी जान पड़ती है यह रचना सौंदर्य का कितना सुन्दर वर्णन किया है बहुत बधाई आपको |
आभार सरिता जी
satish ji namaskar,
khubsurat kavita.....badhai svikar karein...
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