हम पंछी एक डाल के
Disclaimer:यह कहानी किसी भी धर्म या जाती को उंचा या नीचा दिखाने के लिए नहीं लिखी है, यह बस विषम परिस्थितियों में मानवी भूलों एवं संदेहों को उजागर करने के उद्देश्य से लिखा है. धन्यवाद.
बात कुछ बीस साल पुरानी है. इलाहाबाद के अतर्सुइय इलाके में बहुत लोगो की तरह ही पंडित दीना नाथ और मौलाना नजरूल भी रहते थे, और बहुत गहरे दोस्त थे. पंडित जी संस्कृत स्कूल में अध्यापक के साथ साथ वहीँ के हनुमान मंदिर में पुजारी थे. मौलाना साहब पास की मस्जिद में ही औलिया थे, बच्चे दोनो के ही बड़े हो गए थे और उनकी दुकाने थी.
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दोनो ही परिवारो में बड़ा मेल जोल था और एक दूसरे के घर आया जाया करते थे. मौलवी साहब होली दिवाली की बधाइयाँ और मिठाइयाँ कभी नहीं छोड़ते थे. दीना नाथ जी का परिवार भी शायद ही कभी ईद की सिवैयां छोड़ा हो. हाँ पंडित जी नहीं खाते थे, पर शायद लोगो के पीठ पीछे पंडित जी ने चखी तो होगी ही. कभी न कभी नजरूल साहब ने दोस्ती की कसमे खिलाये ही होँगे जवानी के दिनो में.
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पर पिछले दो तीन महीनो से इलाहाबाद में बहुत तनाव चल रहा था. बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के आस पास का समय रहा होगा. जत्थे भर भर कर भीड़ दक्षिण और पश्चिम भारत से इलाहाबाद के रास्ते अयोध्या जाती थी. कई बड़े लोगो ने उनके खाने पीने की व्यवस्थाये भी कर रक्खी थी. इन्ही की लालच में इलाहाबाद से सटे गावो से भी लोग आ रहे थे और वहीँ सड़को पर ही सोते थे. ये शहर बहुत शांत और सुस्त किस्म का है, मगर ऐसी भीड़ आ जाने से बहुत हलचल बढ़ गई. इन सब को नियंत्रित करने के लिए भारी मात्रा में पोलिस भी तैनात थी, और गाहे बगाहे भगदड़ इत्यादि आम बाते हो गई थी. और यह सब कुछ स्थानीय निवासियो के लिए कौतुहल और परेशानी का केंद्र बना हुआ था.
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पंडित जी का छोटा लड़का 'गुड्डू' थोडा निकम्मा था, इधर उधर घूमता रहता, और आज कल ऐसे लोग के साथ घूम रहा था जिन्हें अब तक समाज में लफंगो की संज्ञा दी जाती थी. लेकिन कुछ दिनो से हिन्दुओ का सिपाही कहा जा रहा था. कुछ काम-धाम न होने की वजह से ये लोग बस इधर उधर घूम के मार-पीट, छेड़-छाड़ किया करते थे. लड़का हाथ से निकल चुका था.
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इधर गुड्डू की हरकतो की वजह से आजकल दोनो परिवारो के बीच आना जाना कम हो गया था. बस बच्चे ही कभी कभी क्रिकेट खेलने निकलते थे. पर माएं 'पढना नहीं है क्या?' की उलाहना देते हुए बुला लेती थी. और कल तो हद ही हो गई. मोहल्ले के एक क्रिकेट मैच में मौलवी साहब के बड़े लडके जावेद पर हाथ उठा दिया. काफी कहा सुनी हुयी. उसमे हिन्दू-मुसलमान जैसे शब्द भी इस्तेमाल किये गए. किसी को कुछ चोट तो नहीं आई पर दिलो के बीच दूरियां बहुत बढ़ गई. वक्त बहुत बुरा था. सभी लोग एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहे थे.
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शायद जनवरी का महीना था. ठण्ड में सडके वैसे भी छह सात बजे खाली हो जाती है. और ऊपर से ऐसा माहौल. दूकानदार अपना अपना सामान समेट ही रहे थे, की पता नहीं कहाँ से कर्फू लगने की अफवा आ गई.. लोग तो ज्यादा नहीं थे पर दुकानदारो में अफरातफरी मच गई. दो मिनट में ही, पचास एक लोगो की भीड़ भागी चली आ रही थी. और ये अफवाह नहीं थी. कुछ 10 घोड़े और आठ दस पुलिस वाले भीड़ को तितर बितर करने के प्रयास में हडकंप मचा रहे थे.
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पंडित जी भी भागे भागे जा रहे थे. काफी घबराये थे. इतने में मौलवी साहब का छह साल का नाती सड़क पर दिखा. उन्होने 'नजरूल! जावेद!' की कई आवाजे दी, पर कोई उत्तर ना आता देख लडके को अपनी गोद में उठा लिया और गल्ली से अन्दर की तरफ घुस गए.
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रात के दस बज चुके थे. सिर्फ पोलिस की गाड़ी का सायरन सुनाई पड़ रहा था. मौलवी साहब अपने परिवार के साथ घर के आहाते में थे. जावेद और उसका लड़का घर पर नहीं था. सब परेशान थे. तभी जावेद तीन चार लोगो के साथ हाफते हुए घुसा. उनके साथ गुड्डू भी था पर उसके हाथ और मुह बधे थे. अपने बच्चे के बारे में रोते हुए उसने कहा कि "इन लोगो ने पंडित जी को मेरा लड़का लेके किसी गल्ली में घुसते हुए देखा है". उसके साथ जो लोग थे उनमे से एक ने कहा की "हो न हो, पंडित जी की नियत में खोट है. अगर जावेद के लडके को कुछ हुआ तो हम उसका बदला गुड्डू से लेंगे". नजरूल गुड्डू का हाथ खोलने के लिए आगे बढे, लेकिन बीच में जावेद आ गया. घर वाले आश्चर्य से उन लोगो की तरफ देखने लगे.
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गुड्डू को दालान में डाल दिया था, हाथ और मुह अभी भी बंधे थे. जावेद और उसके साथियो ने घर वालो को वहां जाने से रोक रक्खा था. शायद थोड़ी मार पीट भी की गई थी उसके साथ, और वो मूर्छा की अवस्था में चला गया था. एक घंटा और बीत गया. नजरुल ने चुपके से पंडित जी के घर पूछ ताछ कराई. वहां न तो पंडित जी थे न ही नजरूल का नाती. रात के सन्नाटे के साथ साथ दिलो में भी अँधेरा छाने लगा. एक तो बच्चा नहीं मिल रहा था, ऊपर से ये एक और नई विपत्ति. घर वालो कुछ नहीं सूझ रहा था की गुड्डू की मदद क्या करे.
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रात के एक बज रहे थे, सभी अस्त-पस्त पड़े थे. नजरुल ने हिम्मत जुटाई और दालान में जा के गुड्डू का मुह खोल के पानी पिलाने लगे. धीरे से उन्होने उसके हाथ की रस्सियाँ खोल दी. गुड्डू होश में आ गया था, और उठ के खड़ा होके भागने लगा. इससे पहले की आँगन में पहुचे जावेद के किसी दोस्त ने बहुत तेज़ धक्के दे कर उसे गिरा दिया. गिरने पर वो चिल्लाने लगा - "मै तुम सब को देख लुंगा सालो, पाकिस्तान के कुत्तो, कल सबको बताता हूँ ". वो इस वक्त कहाँ है उसे कुछ गुमान नहीं था.
इतना सुनना था की जावेद तन्द्रा की स्थिति में बदहवास सा उठा, और इससे पहले की कोई उठकर उसे रोके, पास में पड़ी एक छुरी ऊंघते हुए गुड्डू के पेट में घोप दी. छुरी गलत जगह लग गई, ऐसा लग रहा था. गुड्डू निढाल हो के एक तरफ लुढ़क गया. शायद जावेद का उसे जान से मरने का इरादा नहीं था. मगर जख्म पहुचने के मंसूबे में क़त्ल हो चुका था. कोई अपनी जगह से नहीं हिला. सब के सब वही बुत बन कर बैठे रहे. खून एक हुआ था, जाने कई जा रही थी.
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सुबह के चार बज रहे थे. लाश आंगन में पड़ी थी और सब लोग वही जमीन पर छितराए बैठे थे. इतने में दरवाजे पर दस्तक हुयी. लोग झकझोर के उठ गए. "पोलिस तो नहीं आ गई" - किसी के मुह से निकला. लोगो के ऊपर जैसे सौ घड़ा पानी फेक दिया गया हो. बहुत ही खौफ भरा माहौल था. दस्तक दुबारा हुयी, और एक आवाज भी आई -"अब्बू दरवाजा खोलो". सबमे जान आ गयी. मौलवी साहब भाग के गए और दरवाजा खोला. खोलते ही अवाक होकर पीछे हट गए. दीनानाथ उनके नाती को लेकर बाहर दरवाजे पर खड़े थे. बच्चा नजरुल के गले में हाथ डाल कर गोद में चढ़ गया.
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किसी ने उन्हें अन्दर नहीं बुलाया, सब लोग चुपचाप खड़े थे. माहौल न समझ पाने की वजह से धीरे से अन्दर आये. कौतूहल की अवस्था में आँगन में पड़ी लाश देखने लगे. दो मिनट बाद पछाड़ खाकर गिर गए. एक छड के लिए दीनानाथ कि निगाहे नजरूल से मिली और फिर वहीँ बेहोश हो गए.
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मोहल्ले के कई घरो से सुबह उठाने का अलार्म, मंदिरो और मस्जिदो से घंटे-घड़ियालो और अजानो की आवाजे आ रही थी.
Comment
अद्भुत
काव्य रचनाओं की सुखद संमृद्ध फुहार के बीच ओ बी ओ पर अब कहानियाँ भी आ रही हैं और अच्छी आ रही हैं ये सुखद संकेत है ! राकेश जी आपकी कहानी सत्य के करीब और रोचक रूप से कही गयी है | इस हेतु हार्दिक शुभकामनाएं ||
Shri Arun ji, Aapne Kahani poori padhi aur Usaki kamiyan batayin, isake liye Dhanyvaad. Jahan tak Characters ki baat hai, central char Najrool and Deenanath ko to ant tak Sakaratmak hi dikhaya hai, Haan Bache dono ke bigade the aur isaka fal bhi unhe mila. Kahani Dukhant jaroor hai, Nakaratmak nahi, Mai PremChnad se koi tulana to nahi kar raha hun, kintu Godan me mujhe bhi koi Sakaratmak Tathya nahi mila Sivaay Ucch Varg ke Shoshan evam Hori Mahato Ke kin-kartavya-vimoodhtaa ke. Agar Samaaj ke chitran se sahitya ko kheench liya jaay to kya koi yatharth-vaadi kahani aayegi? Saadar!
क्षमा चाहता हूँ , डिस्क्लेमर के बावजूद मैं इसका समर्थन नहीं कर सकता | इस देश में ऐसी बहुत सी घटनाएं अनेक लोगों के साथ हुई होंगी , जिन्हें कहानी के रूप में पेश किया जा सकता है और यह भी कहा जा सकता है कि यह ये या वो सीख देती है , पर अंततः इससे वैमनस्य ही बढ़ता है | रचनाकार छोटा हो या बड़ा , उसे हमेशा प्रस्तुतीकरण सकारात्मक करना चाहिये | हो सकता है प्रेमचंद का जुम्मन और अलगू एक दूसरे का खून करने पर उतारू हो गए होंगे , पर प्रेमचंद ने उसे नकारात्मक नहीं रखा | जैनेन्द्र की चाकलेट पहले घासलेट थी , जिसमें नायक ने बच्चे का खून करके नायिका के साथ बलात्कार किया था , पर जैनेन्द्र ने उसे सकारात्मक बना कर लिखा | समाज की सच्चाईयाँ समाज को मालूम हैं | सवाल उन्हें उजागर करने का नहीं , उन्हें सुधारने और सही मार्ग दिखाने का है | मेरे हिसाब से एक बहुत ही साम्प्रदायिक , हिंसा बढाने वाली , अलगाव पैदा करने वाली वीभत्स फेंतासी , जिसे हटा लिया जाए तो बेहतर है | क्षमाप्रार्थी हूँ |
राकेश जी, नमस्कार,
आज इस प्रस्तुति को देख पाया. सही है, अविश्वास के चौरस पर ही वैमनस्य बीज अँकुरित होता है. इस बोलती कहानी को मेरी हार्दिक बधाइयाँ .. .
श्रद्धेया सीमा जी, एवं भाई आशीष जी, सादर नमस्कार. कहानी सराहने के लिए आभार. बात ये है की हमारा समाज हमेशा विघटित ही होता रहता है, कभी धर्म कभी जाती कभी भाषा के नाम पर. शायाद नैतिक शिक्षा ही इसका उत्तर है, मुझे तो नहीं मालूम.
बहुत ही अच्छी कहानी| आज के समाज में जाति-धर्म के नाम पर ना जाने इस तरह के कितने कत्ल हो रहे हैं|
आदरणीय प्रदीप जी, श्री बागी जी, एवं श्री जवाहर जी, सादर नमस्कार, आप अग्रजों एवं गुनी जानो ने रचना को सराहा, दिल आह्लादित हो गया. आपके अनुमोदन एवं बधाइयों के लिए हार्दिक आभार एवं अभिनन्दन.
वाह क्या बात है, कही से भी इस कहानी में ढीलापन नहीं है, कथानक भी उतना ही बढ़िया , चरित्र चित्रण भी बढ़िया, कथाकाल और वातावरण सबका जिवंत चित्रण किया है आपने, एक छाप छोड़ने में यह कथा सामर्थ्यवान है, बधाई स्वीकार करें |
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