कितना अच्छा लगता है
यूँ अनायास मिलना
दुनियाँ के गलियारों में
साथ-साथ फिरना
अभी छू गई है
पुरवाई गालों को
दे गया चुनौती कौन
दर्द के उबालों को
दहलीज को चूम रहे
आँगन अमलतास के
उधेड़ दो न अब घूंघट
क्षणजीवी प्यास के
कितनी भारी है
आँखों का सूनापन
सोया सा लगता है
सांसों का सूनापन
मन से टकराता है
ऐसे सन्नाटा
कंठ में चुभे जैसे
सेही का कांटा
पोर पोर में सरसों फूली
आँखें रसमसाती
मधु अतीत की सुगंध पीकर
पांखें कसमसाती
Comment
आदरणीय भ्रमर जी ! जय श्री राधे. रचना की सराहना के लिए आभार.
आदरणीय जवाहर जी ! सादर अभिवादन! सराहना के लिए आभार.
आदरणीय गणेश जी ! सादर अभिवादन! रचना की सराहना के लिए आभार.
आदरणीय प्रदीप जी ! सादर अभिवादन! सराहना के लिए आभार.
धन्यवाद !मृदु जी.सराहना के लिए आभार.
संदीप जी !सादर अभिवादन! मैं तो आपकी गजलों का प्रशंसक हूँ.आपकी सराहना मिली,अच्छा लगा.
धन्यवाद ! महिमा जी.आपको रचना पसंद आई,यह जानकर अच्छा लगा.सराहना के लिए आभार.
सादर अभिवादन! आदरणीया राजेश कुमारी जी.सराहना के लिए आभार.
पोर पोर में सरसों फूली
आँखें रसमसाती
मधु अतीत की सुगंध पीकर
पांखें कसमसाती..
अभी छू गई है
पुरवाई गालों को
दे गया चुनौती कौन
दर्द के उबालों को
भावाभियक्ति एवं मर्म का स्पष्ट चित्रण करती रचना पर बधाई स्वीकार करें!
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